महिला पर दोषारोपण करना हमारा अधिकार सा बन गया ऐसी कुरूतियों की वजह से | जिस वजह से महिलाओं को हर कदम चुनौती का सामना करना पड़ा और आज के वर्तमान में भी महिलाएं अपने हक के लिए लड़ रही हैं |
हमारे देश का नाम भारत है जिसको हमने एक
स्त्रीलिंग में माता का दर्जा दिया है लेकिन कभी इस दर्जे से प्रेरणा नहीं ली और
हमेशा ही महिलाओं का दमन करते आये चाहे वो दहेज़ के लिए हो या हवस के लिए या अधिकार
के लिए |
इतिहास की तरफ दिया लेके जायें तो महिलाओं को भी
किसी अनुसूचित जाति से कम नहीं माना जाता था | आज देश में दुनिया भर के टेक्स हैं
| लेकिन पौराणिक भारत में एक समय ऐसा भी जब तन ढकने
के लिए महिलाओं को टैक्स देना पड़ता था |
जरा सोचिये...! ये कितना घिनौना और अश्लील
टेक्स था जब आपको शर्ट या ब्लाउज पहनने के लिए सरकार या किसी वर्चस्वशाली समूह की
आज्ञा लेनी पड़े..? ये मात्र एक कल्पना नहीं है बल्कि 19वीं शताब्दी में
ऐसा हुआ करता था | जब महिलाओं को अपना धड़ ढकने की मनाही थी | वो भी उन महिलाओं को
जो अवर्ण समाज का हिस्सा थी | हां सवर्ण महिलाएं इस टेक्स का हिस्सा नहीं थी लेकिन
उन पर घरेलु पाबंदियां बहुत थी, कि घर से बाहर नहीं जाना, अपने अधिकार के लिए किसी
अपने पति के सामने ऊँची आवाज में बात नहीं करना | किसी भी युग की पृष्ठभूमि देख
लीजिये महिला को ही दोष दिया जाता आया है चाहे कह्वातों के जरिये ही सही कि – जैसे
सीता के कारण रामायण में किसी का वंश नष्टकारी युद्ध लड़ा जाना या सीता की अग्नि
परीक्षा या कहो तो द्रोपदी के कारण महाभारत जैसा विध्वसंकारी युद्ध या फिर शूद्र, गंवार, ढोल, पशु, नारी, ये तो हैं ताड़ना के अधिकारी...आदि |
अर्थात महिला पर दोषारोपण करना हमारा अधिकार सा
बन गया ऐसी कुरूतियों की वजह से | जिस वजह से महिलाओं को हर कदम चुनौती का सामना
करना पड़ा और आज के वर्तमान में भी महिलाएं अपने हक के लिए लड़ रही हैं |
आज महिला शोषण के खिलाफ आवाजें उठ रही हैं |
समानता और आज़ादी की मांग उठाई जा रही है | आज का समाज जो महिलाओं को तन ढककर रखने
की नसीहत देता है, एक समय ऐसा था, जब उसके तन ढकने
पर भी टैक्स लगाया जाता था |
एक समय ऐसा भी था जब अवर्ण महिला ब्रैस्ट (स्तन )पर भी टेक्स (कर) लगाया जाता था...
आओ जाने इस टेक्स की कहानी जब तन
ढकने के लिए चुकानी पड़ती थी कीमत....
आज से लगभग तीन सौ साल पहले त्रावणकोर, केरल के
दक्षिण में एक ऐसी कर प्रणाली थी जिसमें
सिर्फ पिछड़ी और दलित जाति को ही टैक्स भरना पड़ता था | जमीदारों द्वारा लगाया जाने
वाला यह टेक्स अब तक का बेहद शर्मनाक टेक्स था | जिसके तहत अवर्ण युवतियों और महिलाओं
को अपने वक्षस्थल ढ़कने के लिए टेक्स देना पड़ता था | ऐसा करने के पीछे की वजह ऊँची जाति के
लोगों को सम्मान देना होता था साथ ही, यह ऊँची और नीची जाति के लोगों में वर्चस्व
और सवर्णों के अभिमानी होने का भी
प्रतीक था | ऐसा नहीं था कि पुरुषों को तन ढकने की इजाजत थी और महिलाओं को नहीं | यह
व्यवस्था दोनों यानी पुरुष और स्त्रियों के लिए थी लेकिन टेक्स का महिलाओं के लिए
ही था | इस टेक्स को स्थानीय भाषा में ‘मुलाक्कारम’ टेक्स कहा जाता था | टेक्स वसूलने के
लिए शाही अधिकारी घर-घर जाया करते थे | जब अवर्ण युवतियां अपना यौवनारंभ प्राप्त
कर लेती थीं, तब लगना शुरू हो जाता था | इसमें सबसे घृणित
बात तो ये थी कि यह टेक्स स्त्रियों के वक्ष के आकर के अनुसार लगाया जाता था |
ऐसा नहीं की इस तरह के टेक्स का विरोध नहीं
होता था, काफी समय से इसके खिलाफ आवाज उठाई जाती रही लेकिन जमीदारों के दमन के
इसका विरोध निरस्त रहता |
फिर नंगेली ने अपने स्तन काटकर किया था विरोध...
नंगेली एक स्वाभिमानी गरीब एज्हवा महिला थी |
बचपन बिप्दाओं में बीता | जैसे जैसे बड़ी हुई माता-पिता के छत्र-छाया से भी वंचित
रही | सवर्ण ही नहीं अवर्ण लोगों ने भी उसका यौन शोषण किया | गरीबी के कारण उसका
परिवार इस कर को चुकाने के लिए भी असहाय था | इसलिए उसने ठान लिया कि इस कर के
खिलाफ आवाज उठाएगी और उसने आवाज भी उठाई | इस कर व्यवस्था का विरोध करते हुए अपने
स्तनों को काट दिया |
इस तरह एक महिला विद्रोह ने केरल के दमनकारी "स्तन कर" को समाप्त कर दिया | |
कहते है कि जब कर इकट्ठा करने वाले पर्वथीयार उनके
घर टैक्स मांगने पहुंचे तो, नंगेली ने प्रथा के अनुसार लैंप जलाया
और केले के पत्ते रखे| लेकिन उसमें पैसे देने की बजाय अपने स्तन काटकर रख दिए | यह
खुनी मंजर देखकर वह डरकर भाग गया | वहीं दूसरी और खून से लथपथ हो चुकी
नंगेली ने अपने घर की दहलीज पर ही दम तोड़ दिया | कुछ समय बाद उनका पति चिरुकंदन अपनी
पत्नी को ढूंढते हुए घर पहुंचा तो, उसने उसे मरा हुआ पाया | अपनी पत्नी की
इस दर्दनाक मौत से वह इतना दुखी हुआ कि उसके पत्नी वियोग में उसकी चिता की अग्नि
में कूद गया | इस घटना ने लोगों के अंदर गुस्सा और रोष पैदा कर दिया | लोग ब्रैस्ट
कर के खिलाफ खड़े होने लगे और इस कर के खिलाफ जबरदस्त विरोध शुरू कर दिया | नंगेली
के इस बलिदान ने इस कर व्यवस्था और एक प्रकार के जाति के आधार पर हो रहे शोषण को
खत्म कर दिया | जिस गाँव में वो रहती थीं आज वह स्थानीय भाषा में मुलाचिपराम्भु नाम
से जाना जाता है | जिसका अर्थ है ऐसी जगह जहां स्तनों वाली
महिला रहती थी |
इस पितृसत्ता समाज में स्त्रियों का शोषण कई
प्रकार से किया गया | एक महिला होना और ऊपर से अवर्ण जाति में और भी ज्यादा
दुखदायी होता | उन्हें महिला होने के साथ-साथ अपनी जाति में पैदा होने की भी सजा
मिलती | ऐसे में, नंगेली का विद्रोह और उनकी कुर्बानी आने वाली
पीढ़ी के लिए एक तोहफा रही | लेकिन आज भी कितनी नंगेली, निर्भया, आसिफा कुपुरुसार्थ
का शिकार हो रही हैं | हवस व्यक्ति को किस स्तर तक ले जा रही है उसका उदाहरण आज के
समाज से मिलना एक सामान्य सी बात हो गयी हैं | इसलिए आज के युग को महिलाओं के प्रति
अपना नजरिया बदलना चाहिए, जो मंद ही सही मगर बदल रहा है |
और इसी प्रकार हमें जाति-धर्म, सवर्ण-अवर्ण जैसे शब्दों का खंडन कर समाज को एक नई दिशा की ओर ले जाना चाहिए जहां जाति-धर्म, सवर्ण-अवर्ण और से देश के विकास का दमन ना हो सके |
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