Sorry Aasifa : तेरे तन और मेरे मन का बलात्कार...

एक नन्ही परी आसिफा 
मिटा सके जो दर्द तेरा, वो दवा कहाँ से लाऊँ...?
चूका सकूं ये कर्ज तेरा, वो फर्ज कहाँ से लाऊँ...?
अफ़सोस है  मुझे, पर मेरे लिखने से क्या है होने वाला
लिख सकूं मैं अथो भाग्य तेरा, वो कलम कहाँ से लाऊँ...?
देख यूं हालत ये तेरा, छलनी बहुत हुआ कलेजा मेरा
रोक सके जो अश्क मेरे, वो नैन कहाँ से लाऊँ...?
क्यों ख़ामोश है तू इतनी, क्या गूंगे बहरे हो गए सारे...
सुना सकूं जो हालात तेरा, वो जुबाँ कहाँ से लाऊँ...?
तेरी आवाज बन चीख सकूं उन बेहरे हैवानों को 
झकझोर सकूं इन मुर्दों कोवो अल्फाज कहाँ से लाऊँ...


जानता हूं जिस्म तड़प रहा था तेरा और बा-वक़्त कलेजा जल रहा था मेरा
फिर तू बन गयी लाशअब तुझे दफना सकूं वो मिट्टी कहां से...?


नोट : ये अल्फाज मात्र आसिफा या अन्य बच्चियों की आवाज नहीं बल्कि हैवानियत से विकृति रूपी इंसान के लिए आईना है...!




Poem By : हिमांशु पुरोहित सुमाईयां '

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