तो क्या चचा ट्रंप नहीं आयेंगे 26 जनवरी की जलसा-ए-परेड के सिरकत-ए-नवाजी में....?

एक तरफ वो हैं जो दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, जिनको दुनिया के सबसे बड़े आर्थिक-व्यापारिक लोकतंत्र के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 जनवरी की जलसा-ए-परेड में आने का न्यौता दिया और खबर आरही है कि चचा ट्रंप ने इसे ठुकरा दिया...?क्या इससे दुनिया के सामने मेजबान का शर्मिंदा होना लाजमी है या मेहमान का...?या फिर ये कहो कि हमने उसे बुलाया ये हमारा सौभाग्य है वो नहीं आया वो उसका दुर्भाग्य...?
हमारे देश की प्राचीन कालीन संस्कृति रही है “अतिथि देवो भवो“ | और इसी हवाले का अनुसरण करके हम अपने देश में किसी बिन बुलाये मेहमान का भी निस्वार्थ सम्मान करते हैं | बहुत दिनों पहले से खबर चल रही थी कि प्रधानमंत्री कार्यालय से वाइट हाउस में एक आमंत्रण पत्र गया था कि चचा ट्रंप 26 जनवरी की जलसा-ए-परेड के सिरकत-ए-नवाजी करेंगे | लेकिन PTI की खबर के अनुसार इस आमंत्रण पत्र पर रशियन तंत्र का ग्रहण लग गया | अमेरिका की यह नाराजगी इसलिए जायज होगी क्योंकि अभी कुछ दिनों पहले रूस द्वारा आपसी रक्षा साझेदारी के S-400 एयर डिफेंस सिस्टम डील वाइट हाउस प्रशासन को रास नहीं आया | यहां तक कि डील के हस्तांतरित होने से पहले ही वाइट हाउस ने भारत पर प्रतिबन्ध लगाने की बात कर दी थी | क्योंकि वाइट हाउस चाहता था कि इस तरह का रक्षा सौदा भारत अमेरिका के साथ करे ना की उसके चिरप्रतिद्वंदी रूस के साथ | भारत और रूस का यह रक्षा या सौदे का रिश्ता कोई 10-20 साल पुराना नहीं बल्कि आजादी के जमाने से है और भारत लहजे से भारत भी रूस के पक्ष में रहता है |
भले ही अमेरिका से उसकी कोई इस मसले को लेकर किसी तरह अव्यावहारिक गुप्तुगु नहीं है | शायद इसी रक्षा समझौते को लेकर अमेरिका रूठी हुई साली की तरह नाराजगी दिखा रहा है | आपको बता दें कि इस डील के बाद हाल ही में चचा ट्रंप ने कहा था कि भारत जल्द ही दंडात्मक काट्सा काउंटरिंग अमेरिकाज एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस ऐक्ट (CAATSA) प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा । हाल ही में भारत के दौरे पर आए अमेरिकी रक्षा मंत्री जिम मैटिस और विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने CAATSA के तहत भारत को राष्‍ट्रीय सुरक्षा  के आधार पर प्रतिबंधों में छूट देने का पुरजोर समर्थन किया है। काट्सा रूस से हथियार और ईरान से तेल के आयात को रोकता है । कई विशेषज्ञों इस मसले पर यह मानते हैं कि यदि चचा ट्रंप भारत को छूट देंगे तो यह शर्तों के साथ देंगे कि आगामी वर्षों में भारत को इसके बदले में अमेरिका के साथ बड़ा रक्षा सौदा करना होगा ।

हमने उसे बुलाया ये हमारा सौभाग्य है वो नहीं आया वो उसका दुर्भाग्य..?
सही मायने में कहा जाएँ तो सब कुछ बनियागिरी पर डिपेंड करता है | एक कहावत है कि – बाप बड़ा ना भईया, प्यारे सबसे बड़ा रुपाईया...!


चचा ट्रंप ना आये तो कौन होना चाहिए अगला मेहमान...?

वैसे अभी इस बात की पुष्टि नहीं हुई है कि वाइट-हाउस में बैठे चचा नहीं आयेंगे | लेकिन मसला-ए-अगर असल में ना आये तो किसको बुलाना चाहिए..?
मेरे हिसाब से फ़्रांस के राष्टपति औलांद के राजनीतिक उत्तराधिकारी मैक्रोन बुलाना चाहिए | राफेल के फैले हुए रायते से बार बार सियासी पटल पर स्लिप हो रहे हैं | जो 26 जनवरी की जलसा-ए-परेड के बाद भारत की जमुहुरियत को राफेल के दाम भी बता देते | मसलन इसमें घोटाले की सडन है तो बीजेपी के 2019 की दिवाली का सपना अधुरा रह जायेगा और यदि घोटाले की सडन है तो इसी बहाने विपक्ष को 2024 तक दीया लेकर खोजना पड़ेगा | वैसे भी आज कल देश में राफेल पर बवाल कटा हुआ है | कलयुगी रामराज में चोर उल्टा कोतवाल को डांट रहा है कि राफेल का दाम बता....!
खैर, बवाल कटना चाहिए जम्हूरियत में रौनक बनी रहती है |
हां तो हम मेहमान की मेजबानी की फेहरिस्त (लिस्ट) बना रहे थे कि आलना ना आये तो फलाना आये और फलाना को ना बुलाया ही ना जाए तो कौन आये...?
तो इस फेहरिस्त में अगला नाम है हुकूमत-ए-पाक के वजीर-ए-आला जनाब इमरान खान साब... क्योंकि जब से वो पाकिस्तान के कुर्सी के कुरैशी बने हैं पाकिस्तान की आर्थिक हालत बेकाबू बनी हुई है, बावजूद इसके भी वो आतंकवाद को बढावा दे रहा है | और आये दिन वजीर-ए-आला के दफ्तर से भारत विरोधी बयान जारी होते हैं विद “ हम परमाणु संपन्न देश हैं “.....अगैरा-वैगेरा...

वैसे इससे पहले सन 1955 में पाकिस्तान की तरफ से जनरल गवर्नर गुलाम मोहम्मद प्रधानमंत्री नेहरू जी की सरकार में 26 जनवरी की जलसा-ए-परेड के सिरकत-ए-नवाजी के मेहमान-ए-खास रह चुके हैं | यह पहला मौका था जब राजपथ पर देश में पहली बार परेड हुई थी | फिर 1965 के जलसा-ए-परेड के मेहमान-ए-खास पाकिस्तान के एग्री-कल्चर मंत्री राणा अब्दुल हमीद थे, वो अलग बात कि इसके सिर्फ़ कुछ महीने बाद ही भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हो गयी | मेरे हिसाब से चचा ट्रंप के ना आने के उपलक्ष में इमरान खान को इस बार आमंत्रण पत्र देना चाहिए, जिससे दोनों पड़ोसी देशों के बीच आपसी सहमति बने और दोनों देश आतंक के खिलाफ एक हों सकें | नहीं तो कम से कम आंखो देखी खान साहब भारत की सैन्य शक्ति ही देख लेंगे कि आने वाले समय में अपने वजीरों का पाकिस्तान के परमाणु संपन्न होने का गुरुर तोड़ सकें कि उनके परमाणु भारत का कुछ नहीं बिगाड़ सकते |
खैर...हमारे देश की सियासत और सोयी हुई जमुहुरियत, चचा ट्रंप आदि को लेकर एक शायराना अंदाज-ए-बयां करना चाहूंगा कि –

साफ़ दामन का दौर तो कब का खत्म हुआ साहब
अब तो लोग अपने धब्बों पे भी गुरूर फरमाने लगे हैं….!

Web Title Source : BBC Hindi

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