थोड़ा आम चुनाव 2014 की तरफ रुख करें तो उस समय सभी मायनों में बीजेपी का अहम मुद्दा कांग्रेस थी | कांग्रेस की नीतियों को ढाल बनाकर बीजेपी 2014 के आम चुनाव को जीतने में सफल हो गयी थी | लेकिन अब के चुनाव में ऐसा क्या मुद्दा होगा जिसको ढाल बना कर बीजेपी पुनः सत्ता में बने रहने का दावा पेश करेगी ?
मोदी कार्यकाल के चार साल निपट चुके हैं | मोदी
जी ने 2014 के आम चुनाव से पहले जो चुनावी वादे किये थे उस पर वर्तमान सरकार खरी
उतरी है या नहीं इसका निर्णय 2019 में होने वाले आम चुनाव में जनता जनार्दन करेगी,
लेकिन वर्तमान सरकार ने चार साल में क्या उन वादों (जुमलों) का निर्वाह किया है |
जिसकी तर्ज पर वह 2014 का
शंखनाद जीत पाए थे...?
छल, बल, जुमलों की राजनीति से सियासत जीती जा
सकती है, लेकिन सियासत में बने रहने के लिए जनता की सोच और विकास के पैमाने को एक
धुरी पर लाना इतना सहज नहीं होता | राजनीति में जो 5 साल दिए जाते हैं वह इतना भी
लंबा समय नहीं होता कि किसी भी पार्टी के चुनावी वादों को जनता भूल जाए | वो भी तब
जब जिन वादों के बल पर पार्टी ने चुनाव जीता हो और यही हकीकत मोदी सरकार पर उतनी
ही लागू होती है जितना कि अन्य राजनीतिक दलों पर |
चुनावी वादों से चार साल का सफरनामा |
जैसा कि गत आम चुनाव के गर्भ में जाकर देखें तो नरेंद्र मोदी और
भारतीय जनता पार्टी और उसके सहयोगी दलों के वरिष्ठ नेताओं ने जनता से बढ़ चढ़कर कई
वादे किए | कांग्रेस की नीतियों से खंडित होकर बिना किसी अन्य विकल्प के जनता ने
इन वादों पर बेशर्तिया भरोसा भी किया | नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी ने देश के
लोगों को जो सपने दिखाए थे उनमें विकास, विदेशों से काले धन की वापसी, हर
खाते में 15 लाख रुपये (विदेशों में काला धन इतना है कि
यदि देश में आता तो हर किसी के खाते 15 लाख
रूपये हो सकते हैं, अर्थात इतना काला धन विदेशों में है) अच्छे दिन और भ्रष्टाचार को खत्म करना
, पाकिस्तान की किसी भी शरारत पर उसको मुंह तोड़ जवाब देना, डिजिटल इंडिया, मेक इन
इंडिया, बेरोजगार से पीड़ित युवाओं को रोजगार, मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम
गवर्नेंस, महंगाई, भूमि अधिग्रहण क़ानून, अर्थव्यवस्था में बदलाव आदि और चुनाव के
बाद स्किल इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान, नमामि गंगे के तहत गंगा को स्वच्छ रखने का
प्रयास और भी ना जाने कितने विधानसभा चुनावों में वादों के जुमलों से जनता के विश्वास
को जीतने के लिए जान-फूंक दी थी |
खैर, जब बीजेपी पूर्ण बहुमत के साथ आम चुनाव जीत गयी
तो एक साक्षात्कार में भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने अप्रत्यक्ष रूप से जनता के
विश्वास को ठेस पहुँचाने हेतु यह बयान दिया कि सभी के बैंक खाते में 15
लाख रुपये का वादा सिर्फ एक चुनावी जुमला था इससे ज्यादा और कुछ भी नहीं | हालांकि
आधुनिक भारत का युवा वर्ग और कुशल बुजुर्ग वर्ग यह अच्छी तरह जानता था कि काला धन फिर
भी एक बार को देश में आ सकता है लेकिन 15 लाख वाली बात उनको भी चुनाव से पहले हजम
नहीं हुई थी | चुनाव से पहले ही सोशल मीडिया पर इसका बखूबी उपहास बनाया गया | लेकिन
समय दर समय देश आज फिर आम चुनाव की देहलीज से चंद महीने दूर खड़ा है लेकिन अब तो
ऐसा लगता है कि बीजेपी द्वारा किए गए सभी वादे सिर्फ जुमले ही थे |
आइए देखते हैं कि कैसे भाजपा ने अपने सभी जुमलाकारी
वादों से देश को गुमराह किया :
- कालाधन बनाम कालाधन धारी बनाम 15 लाख ...
15 लाख का चुनावी जुमले को मात्र जुमला मान कर एक बार के लिए मोदी सरकार
को एक अंक नहीं काटा जायेगा | क्योंकि चुनावी गर्मागर्मी में इस प्रकार के जुमले गरीब
जनता का मनोरंजन तो बखूबी करते हैं |
- मित्रों, भाइयों और बहनों आप विकास चाहते हैं या नहीं..?
मोदी सभी देश के विकास के वादे पर सत्ता हथियाने
में सफल हुए | लगभग हर चुनाव रैली में मोदी ने विकास के मुद्दे को उठाया और लोगों
को ये भरोसा दिया कि अब तस्वीर बदलने वाली है और जल्द ही अच्छे दिन आने वाले हैं |
अच्छे दिन की सम्मोहित कर देने वाली गोली देकर उन्होंने लोगों से अपील की कि अगर
वे विकास चाहते हैं तो भाजपा को वोट दें | और देश की गली-मोह्हलों, नुक्कड़ों,
सडकों, नेशनल हाइवेज आदि के द्वारा अपनी शैली में मोदी ने अपनी रैलियों में इकट्ठी
भीड़ से पूछा करते थे कि : मित्रों, भाइयों और बहनों आप विकास चाहते हैं या नहीं..?
मोदी सरकार के चार साल पूरे होने के बाद भी लोग
यही सोच रहे हैं कि आखिर जिस विकास को पैदा करने का वादा किया गया था वो कहां गायब
हो गया है...? कहीं किसी अल्ट्रासाउंड के जरिये उसका गर्भपात तो नहीं करवा दिया
गया या वो विकास का भ्रूण ही विकसित ना हो सका..?
- अच्छे दिन आने वाले हैं...
चुनावी और मौसम की गर्मागर्मी किए बीच 2014 आम चुनाव में गुजरात मॉडल जोर-शोरों
पर था | उतना विकास मॉडल का आकार नहीं था जितना उससे निकलने वाली चुनावी प्रदुषण
था | तीन बार के मुख्यमंत्री रह चुके मोदी में लोगों ने एक सुनहरे कल की उम्मीद
देखी थी | विकास के गुजरात मॉडल और उसे पूरे देश में फैलाने की बात बार बार पीएम
मोदी ने की | ऐसा करते हुए मोदी ने लोगों को आश्वस्त किया कि अगर बीजेपी की सरकार
आई तो "अच्छे दिन" आने से कोई नहीं रोक सकता |
यहां तक कि बड़ों के साथ साथ नुक्कड़ों पर खेलते
बच्चों के जुबान पर ये गाना रहता था मोदी जी आने वाले हैं, अच्छे दिन लाने वाले हैं...?
We had heard अच्छे दिन आने वाले हैं since the 2014 Elections Season |
लेकिन दुर्भाग्यवश अच्छे दिन के इस राग को सुन
कर मोदी जी प्यारे देशवासी ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं |
- भ्रष्टाचार का अंत...
बीजेपी ने वादा किया था कि अगर पार्टी सत्ता
में आई तो सभी भ्रष्ट लोगों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाएगा | यहां तक कि यहां
तक कह दिया कि यदि एनडीए में भी कोई भ्रष्टाचारी होगा तो उसको भी कतई बख्सा जायेगा
| लेकिन आज भी वह भ्रष्टाचारी मोदी जी नाक के नीचे से होकर विदेश भाग रहे हैं और
कुछ तो उनकी ही पार्टी का हिस्सा बन चुके हैं जिसमें शारदा चिट फण्ड के कुख्यात भ्रष्टाचारी
का नाम भी है | ऐसे कई सरे राष्ट्रवादी भ्रष्टाचारी हैं जो आज बीजेपी का अभिन्न अंग
बन चुके हैं |
इस वादे को जनता ने हाथों हाथ लिया | हालांकि, अमित शाह ने अब ये स्वीकार कर लिया है कि काले धन की समस्या से निपटने के लिए पांच साल का समय भी पर्याप्त नहीं है |
इस वादे को जनता ने हाथों हाथ लिया | हालांकि, अमित शाह ने अब ये स्वीकार कर लिया है कि काले धन की समस्या से निपटने के लिए पांच साल का समय भी पर्याप्त नहीं है |
- बेरोजगारी और महंगाई का खात्मा...
हालांकि, इस बात को दिशाहीन द्रष्टि से नहीं
देखा जा सकता कि समय दर समय बेरोजगारी और महंगाई में वृद्धि पर रोक लगाई जा सके,
हां कुछ हद तक इस पर सरकार नई नीतियों के प्रतिबन्ध से अंकुश लगाने में कामयाब
जरुर हो सकती थी | रोजगार के परिपेक्ष्य में जी न्यूज़ द्वारा अपने एक साक्षात्कार
में पकोड़े के रोजगार वाले कथन पर देश के युवा वर्ग ने मोदी का बहुत उपहास किया था
| बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन इस मुद्दे पर भी मोदी सरकार
शून्यकाल के आवेश में हैं |
जहां तक महंगाई का मुद्दा है तो इस मुद्दे पर
भी सरकार अंकुश लगाने में कुछ से काफी हद तक सफल नहीं हो पाई है | चुनाव के पहले
जनता के बीच जाकर डीजल-पेट्रोल के दामों पर विधवा विलाप किया जाता था आज प्रधानमंत्री
मोदी जनता या मीडिया के साथ इस विषय पर बात करने से भी कतराते हैं |
नमामि गंगे को देश में एक बहुत बड़े अभियान के
तौर देखा जा रहा था कि गंगा की पवित्रता को प्राथमिकता मिलेगी | लेकिन गंगा उद्गम गंगोत्री
से गंगासागर तक गंगा में लगभग 12000
एमएलडी से ज्यादा गंदा पानी यानी सीवेज गिरता है, लेकिन एक
रिपोर्ट के हवाले से पता चला कि अभी तक सिर्फ़ तक़रीबन 4000 एमएलडी सीवेज को ही ट्रीट करने की
सुविधा स्थापित हो पाई है | जिसमें से सिर्फ़ 1000 एमएलडी सीवेज ही ट्रीट यानी साफ़ किया जा रहा है
| चार साल बाद 12000 एमएलडी
गंदा पानी में से सिर्फ 1000 एमएलडी
गंदा पानी साफ होकर गिर रहा है | नमामी गंगे के तहत पांच साल में 20,000 करोड़ खर्च होना था
| इस प्रोजेक्ट के तहत आठ राज्यों में 193 परियोजनाओं के लिए 20,601 करोड़ रुपये की
मंज़ूरी दी गई, लेकिन
द हिंदू के जैकब कोशी की 9 मई 2018 को प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक
मार्च 2018 तक
इस फंड का सिर्फ़ पांचवां हिस्सा यानी 4,254 करोड़ रुपए ही खर्च हो पाये हैं और इतना रुपया
खर्च करने के बाद भी गंगा की स्तिथि में प्रतिशत भर का बदलाव नहीं आया है | आज भी
क्योटो की तर्ज पर बनारस को क्योटो बनने वाले शहर में गंगा गाद से भरी हुई है |
द्वापर के गंगा पुत्र भीष्म थे और कलयुग के गंगा पुत्र.... |
एक बार यदि उस डायलॉग को याद किया जाये जिसमें आपको
मां गंगा ने कभी बुलाया है तो प्लीज इस वक्त बनारस जाइये, क्योंकि गंगा आपसे खुद से जुडी समस्याएं
बताना चाहती है कि आज भी उससे उसके गर्भ में गंदा पानी ही नहीं बल्कि पानी ही नहीं
दिख रहा और जलमार्ग बनाने के बड़े एलान का हाल ये है कि गंगा की गोदी में जब बालू,
बजरी और मिट्टी की गाद में गिल्ली डंडा और गेंद-तड़ी खेलने का ख्याल आएगा, जहाज़ चलाने का नहीं | बनारस में जो
पानी का अलर्ट जारी हुआ है उसकी नौबत क्यों आई..? ऐसे ही कुछ ज्वलंत सवाल मां गंगा
खोज ही नहीं रही है, बल्कि
आपको फिर से बुला रही है |
- क्या नोटबंदी से हुई भ्रष्टाचारियों की नसबंदी...?
नोटबंदी से जरुर काले धन पर अंकुश लगा हो लेकिन
काले धन के आका आज भी खुले आम घूम रहे हैं | चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस के भ्रष्टाचार
को निशाना बनाया और कांग्रेस के कई बड़े नेताओं को भ्रष्टाचार में लिप्त होने का
आरोप लगाया | लेकिन आज तक एक दो को छोड़ दें तो किसी भी बड़े या छोटे नेता पर लगाये गये आरोपों
को अपराध में बदल नहीं पाई है | अभी हाल ही में सुर्खियों में छायी
नोटबंदी से सम्बंधित खबर ने सभी को चौंका दिया । एक आरटीआई कार्यकर्ता मनोरंजन रॉय
की आरटीआई द्वारा जारी आरटीआई रिपोर्ट से खुलासा हुआ था कि अहदाबाद जिला सहकारी
बैंक ने पीएम द्वारा की गई नोटबंदी घोषणा करने से पहले, पिछले पांच
दिनों के अंदर 745.59 करोड़ के 500 तथा 1000 के नोट जमा किये गए । जब इस बारे में
अधिक जानकारी के अनुसार उस समय इस बैंक के निदेशक पद पर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह
थे ।
नोटबंदी से देश से ज्यादा बीजेपी को फायदा |
जिस नोटबंदी से देश में गढ़े कालेधन को उजागर
करने के लिए यह कदम उठाया गया था उसमें बीजेपी के भी कई बड़े नेता शामिल हैं |
जिन्होंने नोटबंदी जैसे फैसले को घोटाले में तब्दील किया |
- पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब...
जम्मू-कश्मीर में सत्ता में होने के बाद भी कई
बार राष्टवादी छवि के बैनर तले वहां कानून के तहत आज भी मोदी सरकार धारा-370 की
नींव को हिला तक नहीं पाई है | आये दिन कश्मीर में आतंकवाद के कारण जवानों की
शाहदत की खबर सुनने को मिलती है, तो कभी सेना के साथ स्थानीय आवाम द्वारा हिंसा की
खबर सुनने को मिलती है | कश्मीर में सत्ता होने के बाद भी सेना पर पथराव जैसी
हिंसा होती रहती है |
सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय लेने वालों शहीदों की शहादत की जिम्मेदारी कौन लेगा |
हां यह कहा जा सकता है कि सेना की मदद से सर्जिकल
स्ट्राइक का फैसला करके आतंकवाद को कड़ी चुनौती जरुर दी है लेकिन सर्जिकल स्ट्राइक को
भी सरकार के बतोलेपन और बड़बोलेपन ने फीका कर दिया | चुनाव से पहले एक सिर के बदले सौ
सिर लाने वाले राष्ट्रवादी वचन को भी जुमले की श्रेणी में लाकर रख दिया है |
यदि निष्कर्ष तौर पर देखा जाये तो बीजेपी जिन
वादों की कुर्सी पर बैठी है उस कुर्सी के नीचे मात्र जुमलों का एक पिटारा है |
ऐसा भी नहीं कहेंगे कि बीजेपी पूर्णत असफल हुई
है सरकार चलाने में | कई वादों पर सफल कार्यशैली के अनुसार कार्य हुआ है तो कुछ पर
कार्य किया जाना बाकि है | क्योंकि भारत जैसे बहुसंख्यक आबादी वाले देश में पांच
वर्ष के कार्यकाल में कोई बड़ी योजना को सफलता पूर्वक निर्वाह करना बहुत बड़ी चुनौती
है | यदि विपक्ष की आलोचना को अनदेखा किया जाये तो विदेश नीति, रक्षा नीति, GST
आदि में मोदी सरकार कुछ हद तक सफल भी हुई है | जहां उसकी सराहना करने का पक्ष तो
बनता है | लेकिन मात्र इन नीतियों के आधार पर देश प्रगतिशील नहीं बन सकता | देश को
और भी कई नीतियों की आवश्यकता है जिसके आधार पर विकासशील पथ से विकसित पथ में
गतिशील हो पायेगा | इसके लिए मोदी सरकार को अभी काफी एक्सरसाइज करनी पड़ेगी लेकिन
क्या उसके लिए जनता मोदीसरकार को पुनः समय देगी या नहीं यह 2019 के आम चुनाव में
जनता जनार्दन स्वयं निर्धारित करेगी |
- फ़िलहाल आगामी आम चुनाव में नए जुमले का इंतजार...
थोड़ा आम चुनाव 2014 की तरफ रुख करें तो उस समय
सभी मायनों में बीजेपी का अहम मुद्दा कांग्रेस थी | कांग्रेस की नीतियों को ढाल
बनाकर बीजेपी 2019 के
आम चुनाव को जीतने में सफल हो गयी थी | लेकिन अब के चुनाव में ऐसा क्या मुद्दा
होगा जिसको ढाल बना कर बीजेपी पुनः सत्ता में बने रहने का दावा पेश करेगी ?
फ़िलहाल आम चुनावों का बिगुल कर्नाटक चुनाव के
समर से बज गया है | ऐसे में नए नारे और जुमले रचने की प्रक्रिया भी शुरु हो गई है
| बीजेपी ने "सबका साथ, सबका
विकास" और "साफ नियत,
सही विकास" जैसै नारों का को जनता तक पहुँचाने में सफल कितनी
सफल हुई है यह तो समय ही बतायेगा | बीजेपी की तरह सभी दलों में आने वाले आम चुनाव
के लिए नारों छलरचना के लिए मंथन सत्र चल रहे हैं | यह देखना दिलचस्प होगा कि
पार्टी अपने नए नारों के जरिए पुराने नारों में किए गए वादों को पूरा नहीं करने का
कैसे बचाव करते हैं |
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