बेनज़ीर को यह बात परेशान कर रही थी कि भारतीय मीडिया का ध्यान उनके कपड़ों पर ही क्यों है..? लेकिन किसी को इसका अंदाज़ा ही नहीं था कि बेनज़ीर वो सभी कपड़े अपनी दोस्त सामिया की बहन से उधार मांग कर लाई थीं | ख़ुद बेनज़ीर के पास तो उनकी टी शर्ट्स और जींस ही थे जिन्हें वो हारवर्ड में पहना करती थीं | भुट्टो और पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की समझ में ही नहीं आ रहा था कि भारतीय मीडिया 1972 के युद्ध समझौते से ज्यादा बेनज़ीर को इतनी तरजीह क्यों दे रहा है ?
भारत-पाकिस्तान युद्ध खत्म हो चूका था | उगते सूरज के साथ बांग्लादेश
ने भी नये वतन को सजदा किया | पुरे बांग्लादेश में इंदिरा के नाम के नारे लगाये जा
रहे थे | दूसरी तरफ पाकिस्तान को करारी हार के साथ ये भी शर्मनाक वाकया था था कि
भारत ने पाकिस्तान के 93,000 लड़ाकों को युद्धबंदि बना दिया था | इसके बाद
दोनों देशों के बीच एक संधि हुई जिसको शिमला समझौता के नाम दिया गया |
1972 में भारत-पाकिस्तान शिमला शिखर बैठक में पहले बेगम भुट्टो
ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के साथ शिमला आने वाली थीं तबियत खराब होने के कारण वो
नहीं आ सकीं | इसलिए ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो ने अपनी बेटी जो उस समय अमेरिका से
पाकिस्तान छुट्टियाँ मनाने आई हुई थी, उसको अपने साथ शिमला (भारत) चलने को कहा |
शिमला समझौते के दौरान पाकिस्तान से लाज बचाने भारत आये थे भुट्टो |
बेनज़ीर ने अपनी आत्मकथा डॉटर ऑफ़ द ईस्ट में 1972 शिमला समझौते से जुडी यादों का वर्णन
किया है जिसमें वो लिखती हैं कि जब वो पाकिस्तान से भारत के लिए उडान भर रहे थे तो
उनके पिता ने उन्हें समझाया कि इस यात्रा के दौरान 'तुम्हें बिल्कुल भी मुस्कराना नहीं है'
| भारतीयों को इसका आभास
नहीं होना चाहिए कि उनकी ज़मीन पर पाकिस्तान के 93,000 युद्धबंदियों के रहते, बेनज़ीर को इस
यात्रा में मज़ा आ रहा है |
और साथ ही भुट्टो ने ये भी कहा, तुम्हें दुखी भी नहीं दिखना चाहिए, क्योंकि
इससे ये संदेश जाएगा कि पाकिस्तान में इस हार को शर्मनाक को लेकर मातम का माहौल है
|
ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो के इस दोहरे रवैये के कारण बेनज़ीर ने एक दम उनसे
पूछा, साफ़ साफ़ बताइए मुझे कैसा दिखना चाहिए |भुट्टो बोले, न तुम्हें खुश दिखना
है और न ही दुखी |
बेनज़ीर ने कहा ये तो बहुत मुश्किल काम है | भुट्टो ने जवाब दिया - बिल्कुल भी नहीं, बस शांत रहना और हमारी और उनकी बातों को सुनना |
इधर पाकिस्तान से आया जहाज भारत की जमीन छू चूका था, भुट्टो और बेनज़ीर
और उनका प्रतिनिधित्व मंडल शिमला एयर पोर्ट पर उतरे और बेनजीर का सबसे पहले ध्यान इंदिरा
गांधी की क़द काठी पर गया और अपने पिता से बोली कि इंदिरा जी कितना छोटी है...?
मिलते ही बेनज़ीर ने उनका अभिवादन किया, अस्सलामवाले कुम....
इस पर इंदिरा ने मुस्करा कर जवाब दिया,
नमस्ते.....
बेनज़ीर की ख़ूबसूरती और शिमला.....
शिमला के लोगों में बेनज़ीर जितनी प्रसिद्ध हुई शायद, उतने स्वयं भुट्टो
भी नहीं हुए होंगे | वो जहाँ भी जातीं लोग उनको देखने के लिए घेर लेते | एक दिन जब वो शिमला
के माल रोड पर कुछ ख़रीदारी करने निकलीं तो उनके चारों तरफ लोग इकट्ठा हो गए
| हर कोई उनसे
इंटरव्यू करना चाहता था | लेकिन भुट्टो को अपने सचिव को इस तरह के
इंटरव्यू के लिए सख्त मना कर रखा था | सिर्फ़ एक भारतीय पत्रकार दिलीप मुखर्जी को
उनसे मिलने की अनुमति दी गई थी वो भी इसलिए क्योंकि उन्होंने भुट्टो की जीवनी लिखी
थी |
भारतीय मीडिया और बेनज़ीर के कपड़े...
भारतीय चाहते थे कि भुट्टो उस ज़माने की हिट फ़िल्म पाकीज़ा देखें | वैसे भुट्टो की फ़िल्म
सिनेमा में कोई दिलचस्पी नहीं थी लेकिन उन्हें लगा कि उनका इंकार कहीं गुस्ताखी ना
हो, इसलिए उन्होंने अपने सचिव खालिद हसन से कहा कि वो बेनज़ीर के साथ माल रोड के
हॉल में ये फ़िल्म देखें, दोनों ने ये फ़िल्म देखी |
दूसरी तरफ सिनेमा समाप्त होने के बाद बेनज़ीर को यह बात परेशान कर
रही थी कि भारतीय मीडिया का ध्यान उनके कपड़ों पर ही क्यों है..? लेकिन किसी को
इसका अंदाज़ा ही नहीं था कि बेनज़ीर वो सभी कपड़े अपनी दोस्त सामिया की बहन से
उधार मांग कर लाई थीं |
ख़ुद बेनज़ीर के पास तो उनकी टी शर्ट्स और जींस ही थे जिन्हें वो
हारवर्ड में पहना करती थीं |
उधर भुट्टो और पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल की समझ में ही नहीं आ रहा था
कि भारतीय मीडिया 1972 के युद्ध समझौते से ज्यादा बेनज़ीर को इतनी तरजीह क्यों दे रहा है ?
जब बेनजीर में देखा इंदिरा ने अपना बचपन...
मीडिया द्वारा बेनजीर को तरजीह देने पर भुट्टो ने खालिद से कहा कि शायद ऐसा कर भारतीय मुद्दों की गंभीरता से सबका
ध्यान हटाना चाह रहे हैं |
बेनजीर और इंदिरा की पहली मुलाकात |
इधर हिमाचल भवन में शाही भोज डाईनिंग टेबल पर लग चूका था | बेनजीर और
इंदिरा आमने सामने बैठी हुई थीं |
भोज के दौरान इंदिरा गांधी पूरे समय बेनजीर को ही निहारती रही थीं
| इस तनाव को छिपाने
के लिए उन्होंने इंदिरा से बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने सिर्फ हां-ना में
ही जवाब दिया | शायद वो याद कर रही थीं कि वो भी अपने पिता जवाहर लाल नेहरू के साथ
इसी तरह के बड़े बड़े शिखर सम्मेलनों में जाया करतीं थीं | शायद वो बेनज़ीर में अपने आप को ढ़ूँढ़
रही थीं |
भुट्टो का आखिरी दांव पर इंदिरा की मेहरबानी...
अचानक 2 जुलाई को भुट्टो ने कहा कि चलो पैकिंग शुरू करो, हम लोग कल
पाकिस्तान वापस जा रहे हैं | तभी बेनज़ीर ने पूछा, बिना समझौता किए हुए...?
भुट्टो ने कहा - हाँ, बिना समझौते किए हुए.....
सिर्फ भुट्टो को शाम चार बज कर तीस मिनट पर इंदिरा गांधी से एक
औपचारिक मुलाकात करनी थी और रात में पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल भारतीय
प्रतिनिधिमंडल को विदाई भोज देने वाला था | भुट्टो यह जानते थे कि समझौता इतनी आसानी से तो नहीं
लेकिन हो जायेगा | इंदिरा चाहती थी कि भुट्टो समझौता वार्ता की शुरुआत करें,
क्योंकि इंदिरा जानती थीं कि यदि समझौते नाकाम रहा तो जितनी इज्जत भारत में भुट्टो
को पेश की गयी है उससे ज्यादा बेज्जत वो पाकिस्तान जा कर होंगे | यह बात स्वयं
भुट्टो भी जानते थे, इसलिए उन्होंने युद्ध के दौरान इंदिरा से भारत के कब्जे वाले
पाकिस्तानी इलाकों को वापिस करने की मांग के साथ बांग्लादेश को मान्यता देने को
राजी हो गये |
भुट्टो जानते थे कि बांग्लादेश तो हाथ से निकल गया है लेकिन भारतीय
कब्जे वाले पाकिस्तानी इलाके वापिस मांगना भीख मांगने जैसा होगा, लेकिन पाकिस्तान
में होने वाली बेज्जती से बचने के लिए वो यह भीख मांगने को तैयार थे |
और हिमाचल भवन में हुआ पाकिस्तानी लड़का....
पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल ने एक कोड ईजाद किया कि अगर समझौता सफल हो
जाता है तो वो कहेंगे कि लड़का हुआ है और अगर समझौता नहीं होता है तो कहा जाएगा कि
लड़की पैदी हुई है |
लगभग रात के बारह बज कर चालीस मिनट पर बेनज़ीर अपने शयन कक्ष में थी
तभी उन्हें ज़ोर का शोर सुनाई पड़ा - लड़का है, लड़का है.....!
समझौते के दौरान इंदिरा, भुट्टो और बेनजीर |
और शिमला समझौता दोनों देश के लिए सफल हुआ लेकिन आज भी पाकिस्तान
सुधरा नहीं है | वहां आतंकवाद का स्तर इतना बढ़ गया है जिसका निवाला बेनजीर भी बनी
|
आज बेनजीर और इंदिरा हमारे बीच नहीं लेकिन इनका रुतबा आज भी
भारत-पाकिस्तान के करोड़ो लोगों के दिलों में कायम है....!
......शिमला समझौते पर आधारित
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