हरीश रावत की हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें लगायी जा रही थी | लेकिन हरिद्वार लोकसभा सीट में किसी भी बड़े दल से अपनी दावेदारी पेश करना राजनीतिक आत्महत्या करने जैसा होगा क्योंकि वहां बीजेपी के निशंक पहले से ही अपने ध्वज को बुलंद कर चुके हैं |
राजनीति में पक्ष और विपक्ष का ही अहम किरदार नहीं होता | यहां तो दल
के अंदर भी ऐसे ऐसे किरदार होते हैं जो एक बैनर के नीचे रहकर भी अपने ही दल के
किसी विपरीत नेता से स्वयं के वर्चस्व को बचाने की जद्दोजहद में लगे रहते हैं |
जिस प्रकार एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकती उसी प्रकार किसी विधानसभा या
लोकसभा सीटों में भी कई नेताओं में से एक ही नेता अपना वर्चस्व बचा पाता है | यहां
विपक्षी दल के नेता से नहीं बल्कि अपने दल के नेता से भी सचेत रहना पड़ता है
क्योंकि इस देश में पुराणों से ही “ घर का भेदी लंका ढहाए “ जैसे कह्वातों का
अधिकारिक प्रमाण होते हैं | यहां एक दुसरे के आगे ना बढ़ने देने के लिए गुप्त द्वेष
रोग लगाया जाता है |
उत्तराखंड में चित्त कांग्रेस में हुकूमत के लिए जंग |
आज कल इसी प्रकार का गुप्त द्वेष रोग उत्तराखंड कांग्रेस में देखने को
मिल रहा है | विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के चारों खाने
चित्त होने के बाद पार्टी में वर्चस्व की लड़ाई छिड़ी है। यहां एक तरफ नेता प्रतिपक्ष इंदिरा हृदयेश
हैं तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत | एक समय ऐसा भी था जब हरीश रावत कैबिनेट
में इंदिरा उत्तराखंड वित्त मंत्री थी | उत्तराखंड कांग्रेस में नारायण दत्त तिवारी
सरकार के बाद हरीश रावत सरकार में भी उनका विस्तृत वर्चस्व था | इसी वजह से उनको
नेता प्रतिपक्ष बनाया गया | जहां एक तरफ रावत को अपनी दोनों पसंदीदा मैदानी सीटों
मुहं की खानी पड़ी वहीँ इंदिरा हल्द्वानी फतह करने में कामयाब रहीं और अब आने वाले
लोकसभा चुनाव के लिए दोनों में नैनीताल सीट को लेकर व्यवहारिक तनातनी चल रही है | दोनों
नेताओं के साथ साथ उनके गुट में भी एक दुसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करने से नहीं चुक
रहे | सोशल मीडिया में भी दोनों गुटों के सेवक तू-तू, मैं-मैं करते दिख रहे हैं |
इस तनातनी का पहला प्रतिबिम्ब त्रिवेन्द्र सरकार की पहली विधानसभा के
बजट सत्र में देखने को मिला जहां इंदिरा ने अप्रत्यक्ष तौर पर हरीश रावत पर यह तंज
कसा कि “पिछली सरकार ने अपनों पर सितम ढाए और गैरों पर खूब करम किया “
| हरीश रावत सरकार द्वारा चुनाव से पहले बेरोजगारों को जॉब कार्ड बाँटने वाले
चुनावी जुमले पर भी उन्होंने कहा था कि - बेरोजगारों को जॉब कार्ड बांटने का ऐलान
चुनावी प्रलोभन था। इसे अनुमति न मिलना ठीक रहा । ऐसे बाहरी कई मुद्दे रहे जहां इंदिरा,
रावत को झुकाने पर तुली रही |
इंदिरा, हरीश और नैनीताल लोकसभा सीट.....
वैसे यह कोई नई बात नहीं है इन दोनों नेताओं के बीच इस प्रकार की
तनातनी हरीश रावत सरकार के शुरुआत से ही देखी गयी है | कई मुद्दों पर इंदिरा ने नाराजगी
जाहिर भी की है | अभी हाल फ़िलहाल तो इंदिरा ने हरीश रावत को घर बैठने तक की सलाह
दे दी कि उत्तराखंड कांग्रेस में बुजुर्गों को अब सियासत से संन्यास ले लेना चाहिए
जिससे युवाओं को राजनीति में आने का मौका मिल सके | जानकारी के मुताबिक हरीश रावत इस
बार नैनीताल सीट से लोकसभा जाने का दांव खेल रहे हैं तो वही हल्द्वानी विधायक
इंदिरा भी इसी लोकसभा सीट पर नजर गढ़ाए बैठी हैं कि यहां से लोकसभा जाने की चाल वो
चलें क्योंकि इस सीट से बीजेपी के वर्तमान सांसद भगत सिंह कोश्यारी ने राजनीति से
सन्यास लेने का ऐलान कर दिया है | जिस वजह से बीजेपी की इस सीट पर पकड़ थोड़ी कमजोर
भी हो गयी हैं | यदि इस सीट का इतिहास देखें तो 1957 से 2014 तक मात्र तीन बार ही बीजेपी इस
सीट को फतह करने में सक्षम हो सकी है | इसलिए दोनों ही दिग्गज नेता इस सीट से अपने
वर्चस्व के स्तम्भ को बनाने के लिए इस प्रकार की नोकझोंक कर रहे हैं |
इससे पहले हरीश रावत की हरिद्वार लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की अटकलें
लगायी जा रही थी | लेकिन हरिद्वार लोकसभा सीट में किसी भी बड़े दल से अपनी दावेदारी
पेश करना राजनीतिक आत्महत्या करने जैसा होगा क्योंकि वहां बीजेपी के निशंक पहले से
ही अपने ध्वज को बुलंद कर चुके हैं | फ़िलहाल उनको वहां से उनको मात देना मुश्किल
ही नहीं नामुमकिन भी है |
इंदिरा को कहा रावत ने कांग्रेस की कोलंबस हैं...
भाजपा छोड़कर आए हेम व नीमा आर्य के कांग्रेस
में ज्वाइनिंग करने को लेकर हो रही बयानबाजी पर हरीश रावत ने भी नेता इंदिरा पर
तंज कसा था कि उन्होंने कहा कि मेरे पास भी एक व्यक्ति कांग्रेस में ज्वाइनिंग
करने की बात कहने आए थे। तब मैनें स्थानीय नेताओं से सहमति बनाने की बात कही थी।
हेम व नीमा मामले में भी सहमति बननी चाहिए थी । इसके लिए रावत ने इंदिरा पर जुबानी
वार करते हुए उनको कोलंबस कहा |
यूथ कांग्रेस चुनाव में भी हरीश रावत और इंदिरा
हृदयेश का मुकाबला...
यूथ कांग्रेस के चुनाव की का ऐलान भी हो चुका
है । प्रदेश कांग्रेस के हाईकमान में भी अपने गुट के युवा को प्रदेश अध्यक्ष की
कमान दिलाने के लिए जोड़-तोड़ शुरू हो गई है। इसके लिए सबसे अधिक चर्चा इंदिरा और हरीश
रावत गुट के नाम की हो रही है । दोनों नेता अपने-अपने स्तर से सियासी बिसात बिछाने
में जुटे हुए हैं ।
यूथ कांग्रेस के चुनाव में प्रदेश अध्यक्ष पद
के लिए पूर्व विधायक रणजीत सिंह रावत के बेटे विक्रम सिंह रावत हैं, जो हरीश रावत गुट के माने जाते रहे हैं
तो वहीं हल्द्वानी से गुरप्रीत प्रिंस जो इंदिरा गुट का माने जाते हैं । यहां भी दोनों
दिग्गज अपने उम्मीदवारों के जरिये एक दुसरे के आमने-सामने खड़े हैं |
अब देखना लाजमी होगा कि विभिन्न चुनावी युद्ध
स्तर पर कौन किसको मात देने में सफल होगा...?
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