योगी डाल-डाल तो भ्रष्ट अफसर पात-पात...!
राज्य
में एक विभाग है प्रदूषण नियंत्रण विभाग। हर उद्योग या प्रोजेक्ट के लिए वहीं से
एनओसी लेनी पड़ती है, तभी जाकर प्रोजेक्ट मंजूर माना जाता है। योगी
आदित्यनाथ जानते हैं कि यह विभाग महाभ्रष्ट है और हर एनओसी के लिए मोटी रकम घूस
में लेता है, और न मिलने पर एनओसी या तो रद्द कर देता है या
फिर महीनों या बरसों तक लटकाए रखता है।
लिहाजा उन्होंने विभाग को निर्देश दिया कि
एनओसी की प्रक्रिया ऑनलाइन कर दी जाए। साथ ही, 45 दिन के भीतर ही
एनओसी दी जाए या फिर रद्द करके उसका कारण बताया जाए। अब भ्रष्ट अफसर अगर ऐसी
चाक-चौबंद व्यवस्था में सेंध न लगा पाएं तो बरसों की कठिन पढ़ाई लिखाई और कठिन प्रतियोगिता
पार करके यहां तक पहुंचने की उनकी मेधा पर ही सवाल उठने लगेंगे।
योगी की नाक के नीचे एनओसी का धंदा करते आला-अफसरान |
लिहाजा उन्होंने उस दफ्तर के बाहर दलाल खुले छोड़ दिये,
जो
उस अफसर/कर्मी तक एनओसी के इच्छुक व्यक्ति को ले आएं। और उन्हें यह बताएं कि रुपया
लाओ, और एनओसी ले जाओ। यदि कोई इनकार करेगा तो उसे एक तो यही समझ नहीं
आएगा कि एनओसी लेने की प्रक्रिया क्या है या ऑनलाइन फॉर्म भरना कैसे है। फिर भी
कोई नहीं माना और वेबसाइट के जरिये फॉर्म भरने की कोशिश करेगा भी तो फॉर्म को ही
इतना जटिल बना दिया गया है कि अच्छे-अच्छे अपना सर खुजाते रह जाएंगे लेकिन फॉर्म पूरा
भर ही नहीं पाएंगे।
और यदि फिर भी कोई जिद पे अड़ गया और रो गाकर
किसी तरह फॉर्म भरने की कवायद में जुट भी गया तो फॉर्म के कुछ पेजेज में उन्होंने
यह तकनीकी सेटिंग करवा दी है कि फॉर्म भले ही भर डालो लेकिन सेव करने के वक्त वह
सर्वर अनवैलबल या कोई और दिक्कत बताकर आपके सारे किये धरे पर पानी फेर देगा।
अब ऐसे में योगी जी महाराज कहाँ-कहाँ और
क्या-क्या देखें..? कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह कि भ्रष्टाचार यूपी की नस नस में
व्याप्त है। योगी आदित्यनाथ भले इंसान हैं…और उनकी मंशा यूपी को पूरी तरह से
सुधारने की है। इसलिए वह दिन-रात एक किये हुए हैं। मगर जो चीज यहां इस कदर गहराई
तक पैठ चुकी है कि हर चाक चौबंद व्यवस्था में सेंध लगाकर सारा विभाग एकजुट होकर
भ्रष्टाचार को बचाने की कवायद में लगा हुआ हो तो फिर योगी आदित्यनाथ के बस का नहीं
है कि वह यूपी में सुधार ला पाएं।
...पत्रकार से रियल इस्टेट उद्यमी बने लखनऊ निवासी
अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से
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