24 जून जो बना कांग्रेस के अतीत का सबसे काला दिवस...
अतीत वर्तमान का समय साक्षी होता है | अतीत का खौफनाक
पर्दा जब भी उठता है, वह किसी को भी कटघरे में खड़ा कर देता है | कहते हैं कि जो
लोग अपना इतिहास नहीं जानते हैं, वो या तो अनाथ होते होते हैं या अज्ञान
|
लेकिन कांग्रेस कोई अनाथ या अज्ञानी दल नहीं है, उसने देश हित और अहित
कई ऐसे कार्य किये हैं जिसका लोहा विदेशों ने भी माना है | उसका सन्दर्भ विकास,
विलास या घोटालों आदि से परिभाषित किया जा सकता है |
आज 24 जून का दिन कांग्रेस के अतीत का एक ऐसा काला दिन है जब बोफोर्स
घोटाले की तोप के गोलों से कांग्रेस की सरकार ढेह गयी थी | यह कहानी तब की है जब 24
जून 1989 के दिन बोफोर्स डील में हुए घोटाले की एवज में लोकसभा में विपक्षी
सांसदों ने इस्तीफ़ा दे दिया | इतिहास का यह दिन देश के लिए इसलिए यादगार साबित हुआ
जब विपक्षी सांसदों ने इस्तीफा देकर कांग्रेस की बहुमत सरकार को गिरा दिया था |
भारत का सबसे बड़ा रक्षा घोटाला " बोफोर्स प्रकरण " |
देश के रक्षण इतिहास में बोफोर्स एक ऐसा घोटाला था, जिसने
1980 और 1990 के दौर में देश के अंदर सियासी कोहराम मचा दिया | इस
घोटाले में कांग्रेस पार्टी के कई बड़े नेताओं का नाम था | यहां तक कि उस दौर के प्रधानमंत्री
राजीव जी का भी नाम जोर-शोर से सामने आ रहा था | सभी आरोपियों के ऊपर स्वीडन की हथियार
निर्माता कम्पनी बोफोर्स से रिश्वत लेकर भारतीय सेना को तोप सप्लाई करने का आरोप
था |
इस घोटाले को एन राम नाम के एक खोजी पत्रकार ने
उजागर किया था | उस समय पत्रकार एन राम दि हिन्दू में कार्यरत थे | इस घोटाले की
वजह से 1989 के आम लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की बहुमतीय सरकार
गिर गई थी |
जब जांच कमेटी बैठी और पता लगा कि इस घोटाले में
कांग्रेस के कई मंत्रियों को बोफोर्स कम्पनी से 12 मिलियन डॉलर की
रिश्वत मिली थी | आरोपों के आधार पर जब कैग ने इसकी जांच की तो
उसने अपनी रिपोर्ट में बताया कि 392 करोड़ के हथियारों को मानकों का उलंघन
करके सम्बंधित कंपनी से ख़रीदा गया था | इसके साथ कैग ने यह भी बताया कि हथियारों
की डिलीवरी में जानबूझकर देरी की गई | इस रिपोर्ट के बाद कहा गया कि घोटाले
पर सदन में विस्तृत चर्चा होनी चाहिए, लेकिन विपक्ष ने इसपर चर्चा करने से इंकार
कर दिया और सदन के अंदर विपक्ष ने मांग की राजीव जी के इस्तीफ़ा की मांग की |
जब राजीव ने इस्तीफ़ा नहीं दिया तो विपक्षी
सांसदों ने खुद सदन से इस्तीफ़ा दे दिया | आगे इन बोफोर्स तोपों का कारगिल युद्ध
में इस्तेमाल हुआ | इन तोपों ने भारत को जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा भी
की थी |
बोफोर्स तोपों का स्वाद पहली बार पाकिस्तान ने कारगिल में चखा |
कहा जाता हैं जब कारगिल युद्ध के समय सेना के जवान एक
के बाद एक दुश्मन पर गोले दाग रहे थे तो जवानों ने तोप से निकलने वाले हर गोले के
साथ स्वर्गीय राजीव जी अमर रहें के नारे भी लगाये थे, क्योंकि बिना बोफोर्स के
कारगिल युद्ध जीतना ना मुमकिन तो नहीं लेकिन बेहद मुश्किल था | लेकिन क्या बोफोर्स
जैसे सौदे की एवज में घोटाले को अंजाम दिया जाना सही था |
क्या था बोफोर्स घोटाला...
यह घोटाला स्वीडन की हथियार निर्माता कंपनी एबी
बोफोर्स से भारतीय सेना के लिए 155 मिमी की 400 हॉवित्जर तोपों
की खरीद के सौदे से जुड़ा है | यह सौदा 24 मार्च 1986 को लगभग 1,437
करोड़ रुपये में हुआ था | लेकिन 16 अप्रैल 1987 को स्वीडिश
रेडियो ने दावा किया कि कंपनी ने इस सौदे के लिए भारतीय नेताओं और रक्षा
अधिकारियों को रिश्वत दी है | इसके बाद 22 जनवरी 1990 को सीबीआई ने
एबी बोफोर्स के अध्यक्ष मार्टिन अर्डबो, कथित बिचौलिए विन चड्ढा और हिंदुजा
बंधुओं के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के तहत आपराधिक साजिश, फर्जीवाड़ा
और धोखाधड़ी का मामला दर्ज किया |
इस मामले में सीबीआई ने पहली चार्जशीट 22
अक्टूबर
1999 को पेश की थी, जिसमें विन चड्ढा, ओतावियो
क्वात्रोची, तत्कालीन रक्षा सचिव एसके भटनागर, मार्टिन
अर्डबो और बोफोर्स कंपनी को आरोपी बनाया गया था | हालांकि, दिल्ली स्थित
सीबीआई की विशेष अदालत ने 2011 में इटली के कारोबारी ओतावियो
क्वात्रोची को बरी कर दिया था | कहते हैं कि ओतावियो क्वात्रोची के दत्तक
गांधी-नेहरु परिवार से खास संबंध भी थे |
गत रक्षा मंत्री सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने
दिया था बोफोर्स पर विवादित बयान...
गत रक्षा मंत्री और सपा प्रमुख मुलायम सिंह
यादव ने एक रैली में यह बयान दिया था कि उन्होंने उस समय बोफोर्स घोटाले से
सम्बंधित सभी फाइलें गायब करवा दी थी क्योंकि उन्होंने लगा कि तोपें अच्छा काम कर
रही हैं। इस सौदे को मंजूरी देकर राजीव गांधी ने अच्छा फैसला किया है इसलिए जांच
को धीमा करने और भटकाने के लिए उन्होंने फाइलें गायब करा दीं। क्या मुलायम सिंह
यादव यह स्थापित करना चाह रहे हैं कि सौदा अच्छा हो तो घोटाला किया जा सकता है?
उन्होंने
अपने बयान से राजीव गांधी और स्वयं को भी संदेह के घेरे में खड़ा कर दिया है। मुलायम
सिंह का बयान यह सिद्ध कर दिया कि घोटाले में बड़े नामों की संलिप्तता थी इसीलिए
उन्होंने फाइल गायब करवाई गयी । यदि सबकुछ ठीक होता तो मुलायम सिंह
यादव को फाइल गायब क्यों करनी पड़ती...? यहां यह सवाल उठने ही चाहिए कि कोई
मंत्री महत्वपूर्ण दस्तावेज गायब कैसे करा सकता है? और जब वह यह
स्वीकारे कि उसने घोटाले से जुड़ी फाइलें गायब की थीं, तब उसके खिलाफ
क्या कार्रवाई होनी चाहिए? मुलायम सिंह यादव ने किसकी खाल बचाने
के लिए फाइलें गायब कीं..? फाइल गायब करने का निर्णय उनका स्वयं
का था या उन्होंने किसी के कहने पर यह कदम उठाया..?
फाइले ही गायिब करिवा दयी |
बरहाल, बोफोर्स घोटाले से स्व. राजीव तो बरी हो गये हैं लेकिन
कांग्रेस आज भी आवाम की नजरों में बोफोर्स के गोले के निशाने पर खड़ी है | कांग्रेस
और बीजेपी और अन्य सभी सत्ताधारी राजनीतिक दलों को आज के दिन से सीख लेनी चाहिए कि
देश हित कार्य की एवज में किसी प्रकार के घोटालों को दिशा देने से परहेज करें |
आज जो लोग यह कहते हैं कि 60 साल में कांग्रेस ने देशहित कई बड़े कार्य
किये ( हम मानते हैं कि कांग्रेस ने विकास पथ पर निष्ठा से कार्य किया है ) उनको
यह भी मानना चाहिए कि देश में कांग्रेस राज में हुए घोटाले की जिम्मेदारी भी
कांग्रेस को ही लेनी चाहिए |
अर्थात कांग्रेस राज में विकसित आधुनिक भारत के विकास के साथ उसमें
हुए घोटालों का श्रेय भी कांग्रेस को दिए जाने पर कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी |
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