Gandhi Murder : महात्मा गांधी के विचार धारा की अनंतता ‘ गांधीवध ’….

यह कोई साधारण हत्या नहीं थी कि कोई जवान लड़का हाथ में तमंचा लिए भीड़ को चीरता हुआ सरेआम लाठी को बैशाखी बनाये एक बुजुर्ग पर तीन गोलियां दाग देता है और ...?

यह हत्या मात्र एक बुजुर्ग गांधी की नहीं थी या एक आजादी के लीडर की नहीं थी | यह हत्या थी एक विचार की, एक सिद्धांत की, एक सम्मान की, देशप्रेम की और हिंसा को अहिंसा का मार्ग दिखने की, जिसने वर्षों तक अंग्रेज हुमुकत की हिंसा सह कर अहिंसा के हथियार से जीता और अंत में भारत को आजाद करवाया |
यह एक ऐसी ऐतिहासिक घटना थी, जिस पर हिंन्दू और मुसलमान ही नहीं बल्कि भारत और नये नवले भारत के विरोधी पाकिस्तान ने भी अफसोस जताया था | गांधीवध के दिन भारत में राजनीतिक, सामाजिक भूचाल आ ही गया था, लेकिन उसके झटके आज के आधुनिक भारत में भी जब-तब महसूस किए जाते हैं |
29 जनवरी 1948 यानि हत्या से ठीक एक दिन पहले ही गांधी जी ने कहा था कि मुझे डर है कि मेरी मृत्यु किसी बीमारी से न हो. ऐसी मौत पर लोग मुझे झूठा महात्मा कहेंगे | मेरे सीने में गोली लगने से मेरी मौत होगीऔर मुंह से राम निकलेगा, तो मैं खुद को असली महात्मा समझूंगा | 
और अगले ही दिन नाथूराम गोडसे उनके इस कथन का साक्षी भी बना |

30 जनवरी के उस दिन से लेकर आज तक और शायद भविष्य के गर्भ तक महात्मा गांधी की हत्या की गुथी उलझी है | सभी दलों के अपने अपने तर्क हैं गांधी जी विचारों के प्रति, सिद्धांतों के प्रति |


गांधीवाद धरोहर है भारत का ( फोटो साभार - गूगल )
गांधीवध किसी किराये के आदमी ने नहीं की थी, ना ही किसी आतंकी संगठन ने की थी | कोई अंग्रेज या मुगल बादशाह भी इस हत्या के पीछे नहीं था | इस हत्या को गांधी-वादी विचार धारा की अंतता से जन्में आजाद भारत के लोगों ने ही अंजाम दिया | यूं तो महात्मा गांधी की हत्या के पीछे संघ, हिन्दू महासभा, वीर सावरकर और नाथूराम गोडसे आदि का अलग-अलग तरीके से नाम लिया जाता है, लेकिन वैचारिक और सात्विक तौर पर सच क्या है किसी को नहीं मालूम | देश में हर कोई अपने अनुसार इतिहास को रेनोवेट करने की फैक्ट्री लगाये बैठा है |

ऐसे में गांधीवध के जुड़े पहलुओं को जानना बेहद दिलचस्प होगा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की क्या भूमिका थी ?

27 सितंबर 1925 को भारत में डॉ॰ केशव बलिराम हेडगेवार ने कांग्रेस से इस्तीफा देकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की | संघ का उद्देश्य पहले दिन से पूर्णतः तो नहीं लेकिन स्पष्ट था कि वे मात्र हिन्दूवादी राष्ट्र चाहते हैं  | आरएसएस विचारकों द्वारा प्रकाशित किताब आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार में लिखा गया है कि बापू ने 1930 में अपना नमक सत्याग्रह शुरू किया, तब हेडगेवार ने हर जगह यह सूचना भेजी दी थी कि एक संगठन के तौर पर संघ इस सत्याग्रह में शामिल नहीं होगा |

हालांकि, किसी को व्यक्तिगत रूप से आंदोलन में भाग लेने से संघ ने नहीं रोका और ना ही कोई विरोध किया |

गांधी जी के निजी सचिव प्यारेलाल नैय्यर द्वारा लिखी किताब के अनुसार जिस दिन नाथूराम ने गांधीवध किया उस दिन एजी नूरानी समेत आरएसएस कार्यकर्ता रेडियो चालू करके बैठे थे, क्योंकि वह इससे घटना के बारे में जानते थे कि ऐसा कुछ घटित होने वाला है इसके बाद उन सभी कार्यकर्ताओं ने मिठाईयां भी बांटी |

सरदार पटेल और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ....

सरदार पटेल ने 18 जुलाई, 1948 को एक खत में हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी के लिए लिखा, जिसमें कहा कि, हमारी रिपोर्टों से यह बात पक्की होती है कि इन दोनों संस्थाओं (आरएसएस और हिंदू महासभा) ख़ासकर आरएसएस की गतिविधियों के नतीजे के तौर पर देश में एक ऐसे माहौल का निर्माण हुआ, जिसमें इतना डरावना हादसा मुमकिन हो सका |

ख़त के कुछ दिनों के बाद आरएसएस और हिन्दू महासभा के नेताओं की गिरफ़्तारियां भी हुई थीं और संगठन पर आरोपमुक्त न होने तक प्रतिबंधित लगा दिया गया |

लेकिन कार्यवाही के दौरान संघ का गांधीवध से जुड़ा कोई ठोस साबुत ना हो सका | जहां तक महात्मा गांधी के विचारों की बात रही है, तो आरएसएस के पूर्णकालिक स्वयंसेवक रहे वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने प्रत्येक जगह गांधी के विचारों को प्रोत्साहन दिया है, जिसका समर्थन संघ में नीचे तक गया है और सभी संघ समर्थक गांधी वादी विचारों से प्रेरणा भी लेते हैं लेकिन राजनीतिक और चुनावी हिंसा सब कुछ धूमिल कर देती है |

हां, यह अलग बात है कि दबी जुबान से अज भी यह बात अवश्य कही जाती है कि पाकिस्तान के रूप में अलग राष्ट्र-निर्माण के लिए कई राष्ट्रवादी महात्मा गांधी को सीधा दोष देते थे और आज भी देते हैं | अंग्रेजों के फूट डालो, राज करो के बीच हिन्दू-मुसलमान की बढती खाई में महात्मा गांधी के सद्भावना प्रयास जारी थे, और उन्होंने यह भी कहा था कि बंटवारा उनकी लाशपर होगा | इसी वजह से पाकिस्तान के हिस्से में रहने वाले हिन्दुओं को गांधी जी पर बहुत विश्वास था कि बंटवारानहीं होगा | वह छोटे-बड़े दंगो के बाद भी निश्चिन्त थे | लेकिन बंटवारा भी हुआ और मानव इतिहास का सबसे बड़ा क़त्ल-ए-आम भी, और साथ-साथ लाखों लोगों का पलायन भी |

जाहिर सी बात थी कि जिसके नाते-रिश्तेदार पलायन और बंटवारे के समय फैली साम्प्रदायीकता में मारे गए, उन्होंने गांधी को ही इसके लिए दोषी माना | पलायन के बाद पाकिस्तान से आये हिन्दू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से काफी संख्या में जुड़े, क्योंकि बंटवारा जमीन का ही नहीं धर्म के अनुसार हुआ था | एक मुल्क हिंदुस्तान जहां सिर्फ हिन्दू ही रह सकते हैं और एक मुल्क पाकिस्तान जहां सिर्फ मुस्लिम ही रह सकते हैं | लेकिन गांधी जी ने हो रहे कत्ले-आम को देकर यह कहा कि जिसको जहां रहना है वो वही रहे, जिन्नाह भी उनकी बात से कुछ हद तक सहमत थे ( जिन्नाह मूवी – पाकिस्तान में दिखाया गया है ) | जिस वजह से एक मुल्क पूरी तरह से इस्लामिक हो गया और एक मुल्क फिर से उसी साम्प्रदायिक आग में जल रहा है |

माना जा सकता है कि अगर महात्मा गांधी को आज़ादी दिलाने का श्रेय दिया जाता है तो भारत-बंटवारे और उस समय हुए क़त्ल-ए-आम के छींटों से यह बड़ा नेता कैसे मुक्त रह सकता था ? सवाल यह भी है कि बात सिर्फ गांधीवध पर ही क्यों हो, बात उन लाखों निर्दोष लोगों पर भी हो जो साम्प्रदायिक दंगों में मार डाले गए उस पर चर्चा क्यों नहीं होती है ? हत्या या हिंसा का समर्थन किसी हाल में नहीं किया जाना चाहिए और कम से कम संघ के इतिहास में खुले तौर पर ऐसा नहीं किया गया है |

विचार भिन्न थे लेकिन आजादी दोनों का मकसद था ,गांधी-सावरकर...

यह बेहद अजीब बात है कि कुछ कुंठित राजनीतिक जन गांधी विचारों से सावरकर विचारों की तुलना करते हैं | मेरे हिसाब विचारों की तुलना तब तक जायज नहीं जब तक मकसद एक ना हो |

खैर, महात्मा गांधी और विनायकराव सावरकर के बड़े भाई नारायणराव सावरकर की शुरुआती मुलाकात लंदन में 1889-90 में हुई थी | वे दोनों अक्सर रामायण, महाभारत और गीता के वास्तविक निहितार्थों पर चर्चा किया करते थे | इसके बाद उनके छोटे भाई गणेश और विनायक सावरकर भी लंदन आगये | तीनों पर गीता और महाभारत से इतने प्रभावित थे कि सत्य के प्रति युद्धवादी छवि साफ़ देखी जा सकती थी | जबकि गांधी विचार इसके बिल्कुल विपरीत थे | गांधी और सावरकर बंधु दोनों ही भारत की आजादी चाहते थे, लेकिन उनके आजादी के प्रति कार्य करने के लिए तौर-तरीकों में अंतर था |


गांधी-सावरकर के बीच विचारों की असामनता लेकिन मकसद एक (फोटो साभार - गूगल)
सन 1909 के समय सावरकर बंधुओं के साथी मदनलाल ढींगरा ने लंदन में कर्जन वॉयली की सरेआम हत्या कर दी | इसके पीछे सावरकर बंधुओं की आक्रामक सोच तो थी ही साथ साथ ढींगरा की असीम देश भक्ति भी थी | कहते हैं कि उस समय खुदीराम बोस, कन्हाई लाल दत्त, सतिन्दर पाल और काशी राम जैसे क्रान्तिकारियों को मृत्युदण्ड दिये जाने से यह तीनों बहुत क्रोधित थे। कई इतिहासकार मानते हैं कि इन्ही घटनाओं ने सावरकर और धींगड़ा को सीधे बदला लेने के लिये विवश किया । जबकि  बापू ने साफ शब्दों में कहा कि दंड ढींगरा को नहीं, बल्कि उस सिखाने वाले को दिया जाना चाहिए, जिसने यह करने के लिए प्रेरित किया | हां ये अलग बात है कि गांधी जी ने कभी भी सावरकर बंधुओं से कोई वैचारिक मतभेद नहीं रखा |

जब 1920 में जब गांधी पूरे भारत में असहयोग आंदोलन कर रहे थे, तब कर्जन वॉयली हत्याकांड में दोषी पाए जाने पर गणेश और विनायक को काला पानी की सजा हुयी | कहते हैं कि सावरकर को ब्रिटिश सरकार ने क्रान्ति कार्यों के लिए दो-दो आजन्म कारावास की सजा दी, जो विश्व के इतिहास की पहली एवं अनोखी सजा थी । इसी बीच आसह्योग आन्दोलन कर रहे गांधी जी की मुलाकात नारायणराव से हुई | नारायणराव ने गांधी जी से गुजारिश करी कि गणेश और विनायक के काले पानी की सजा खत्म करने के लिए सरकार पर दवाब बनाएं | इसके बाद सावरकर बंधुओं को इस शर्त पर रिहा गया था कि वे 1924 से 1929 के बीच पांच वर्षों तक रत्नागिरी जिले से बाहर नहीं जाएंगे और न ही किसी राजनीतिक क्रियाकलाप का हिस्सा बनेंगे |

सन 1923 में जेल में रहते हुए ही विनायकराव सावरकर ने 55 पेज की किताब हिंदुत्व : हिन्दू कौन है..? लिखी | जिसमें साफ शब्दों में कहा गया कि गैर भारतीय धर्मों के लोगों को कभी भी हिंदुओं के रूप में नहीं पहचाना जा सकता | सावरकर की हिंदुत्व विचारधारा राष्ट्रीयता को धर्म , संस्कृति और नस्ल के आधार पर परिभाषित कर रही थी | यही वही समय था जब बापू भारत छोड़ आंदोलन में हिन्दुओं और मुस्लमा नों की सहभागिता का प्रयास कर रहे थे | सावरकर की इस किताब ने गांधी जी के एकल सिद्धांतों को बहुत चोट पहुंचाई | उनका कहना था कि ईसाई और मुसलमान समुदाय,  हाल तक हिंदू ही थे लेकिन उनकी नई पीढि़यों ने नया धर्म स्वीकार कर लिया है | उनमें हिन्दुत्व का रक्त तो है पर नया पंथ अपना कर उन्होंने हिंदू संस्कृति का हिस्सा होने का दावा खो दिया है |

गांधी हत्या केस में दिगंबर बागड़े के बयान से यह साफ हो चुका था कि योजना का क्रियान्वयन सावरकर के सानिध्य में हुआ,  लेकिन उनके खिलाफ कोई स्वयंत्र साक्ष्य नही मिला | लिहाजा सावरकर बरी हो गए, लेकिन बाद में सावरकर ने खुद न्यायाधीश कपूर आयोग के सामने स्वीकार किया था कि वे गांधी वधमें शामिल थे | लेकिन यह रिपोर्ट 1969 में सार्वजनिक हुई थी और सावरकर की मृत्यु 1966 में हो चुकी थी | इसके साथ एक तथ्य यह भी है कि सावरकर का तेल-चित्र संसद में लगाया गया और उनके राष्ट्रवादी विचारों को पूरी तरह से नकारा नहीं गया |

गांधीवादी–सावरकरवादी विचारों के टकराव से जन्में गोडसे वादी विचार...

गोपाल गोडसे ने अपनी किताब गांधी वध और मैं  में नाथूराम के बारे में लिखा है कि नाथूराम के जन्म के समय पंडित ने माता-पिता से कहा था कि इसका पालन पोषण लड़कियों की तरह होना चाहिए, क्योंकि उसकी मनोस्तिथि  भावनात्मक रूप से कमजोर थी | फिर नाथूराम की परवरिश लड़कियों की तरह की गई | ऐसा करते समय उसे नाक में नथ भी पहनाई गई, जिसकी वजह से उसका नाम नाथूराम हो गया |
हिंदुत्व को परिभाषित करने वाले सावरकर के साथ गोडसे का मिलाप 1929 में रत्नागिरी में हुआ | 22 वर्ष की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हो गया, और 1932 में पश्चिमी महाराष्ट्र के एक विस्तारित दौरे में हेडगेवार और बाबूराव सावरकर (वीडी सावरकर के भाई) के साथ रहने लगा | आजादी मिलने के दौर के समय 1944 में उसने सावरकर की मदद से दैनिक अग्रणी समाचार पत्र शुरू किया | इस बीच वे हिन्दु महासभा का खुलकर साथ देते रहे और सावरकर के विचारों को जनजन तक पहुंचाने की जिम्मेदारी उठा ली | उसने बापू को भी पढ़ा था और सावरकर को भी |


गांधी-गोडसे के बीच आजादी के विचारों के मतभेद ( फोटो साभार - गूगल ) 
दोनों के विचारों को पढ़कर गोडसे ने महसूस किया कि पहला दायित्व हिंदुत्व और हिंदुओं के लिए होना चाहिए | यदि 30 करोड़ हिंदुओं की स्वतंत्रता और हितों की रक्षा की गई तो भारत अपने आप सुरक्षित होगा | एक हद तक उनका मानना भी सही था | लेकिन  सालों तक हिन्दू विचारों को गति देने वाले बापू ने जब मुस्लिमों के पक्ष में अपना अंतिम उपवास रखा, तो उसे लगा कि अब गांधी नाम के विचार को शून्य हो जाना चाहिए |
आखिर उसने गांधीवाद को खत्म करने और सावरकर के हिन्दुत्ववादी देश की स्थापना के लिए गांधीवध में मुख्य भूमिका अदा की |


और फिर गांधी विचारों की अनंतता  गांधीवध में बदल गयी !

14 अगस्त को पाकिस्तान और 15 अगस्त 1947 को भारत स्वंतंत्र होकर खड़े थे | दोनो ही देशों के झंडे, रंग, लोग, धर्म, विचार, सिद्धांत सब कुछ बंट चुका था | आजादी के दिन लाखों लोगों की आहुति के बाद रोद्र पूर्ण स्वंत्रता मिल गयी |

गांधी जी हर सूरत में इस बंटवारे में हुए दंगो के विवाद को खत्म करना चाहते थे, इसलिए उन्होंने सरकार से मांग की कि तत्काल दंगों पर रोक लगायी जाये और साथ ही पाकिस्तान को उसके हिस्से के 50 करोड़ रुपयों का भुगतान किया जाए | उनको डर था कि पाकिस्तान में अस्थिरता और असुरक्षा से भारत के प्रति उनका गुस्सा और बढ़ सकता है जिससे सीमा पर हिंसा फैल सकती है जिसके लिए उन्होंने आमरण अनशन भी किया और सरकार ने बापू की जिद के आगे पाकिस्तान को 50 करोड़ रुपयों का भुगतान भी किया, लेकिन पैसा लेकर भी पाकिस्तान ने सीमा में हिंसा फ़ैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी |

हिन्दू महासभा और आरएसएस जैसे हिन्दूवादी संस्थाएं बापू के आमरण अनशन के खिलाफ थे क्योंकि उन्हें शक था कि पाकिस्तान इन रूपयों से हथियार खरीदेगा और हुआ भी ऐसा ही | पाकिस्तान ने सीमा में हिंसा फैला कर आधे कश्मीर में कब्जा कर लिया | जिससे हिन्दू महासभा और आरएसएस काफी आहात हुए |
आजादी मिल चुकी थी | दोनों देशों ने लाशों के पहाड़ों को पार करके आजादी की ख़ुशी मनाई | आजादी के साथ देश स्वतंत्रता से नये साल के आगाज में था | लेकिन गांधी के प्रति कुछ लोगों की सोच वहीं अटकी हुई थी जो आजादी से पहले थी | 20 जनवरी 1948 को मदनलाल पाहवा नाम के एक पंजाबी शरणार्थी ने प्रार्थना सभा में महात्मा गांधी को निशाना बनाते हुए बम फेंका | इस हमले में बापू बाल-बाल बचे | नाथूराम पहले भी अप्रत्यक्ष रूप से (मई 1934 और सितम्बर 1944 में) बापू की हत्या का असफल प्रयास कर चुका था | इसके बाद उसने नारायण आप्टे और विष्णु रामकृष्ण करकरे के साथ पुणे में नई गुप्त योजना तैयार की गई | पहले करकरे दिल्ली पहुंचे उसके बाद 27 फरवरी को आप्टे और गोडसे फ्लाइट से मुंबई से दिल्ली आए | जहां एक शरणार्थी से मोलभाव करके 500 रुपए में एक बैरेटा पिस्टल खरीदी गयी |
इसी महीने 30 जनवरी 1948 की शाम सरदार पटेल से मिलने के बाद बापू आभा और मनु के कन्धों पर हाथ रखकर प्रार्थना मंच की तरफ जा रहे थे, कि तभी वहां नाथूराम गोडसे पहुंचा | उसने बापू को आदर देते हुए उनके पैर स्पर्श किये और जेब में रखी बैरेटा पिस्टल निकाल कर एक के बाद एक तीन गोलियां बापू के सीने में दाग दीं | बापू के मुंह से मात्र अंतिम शब्द निकला हे राम.....


गांधी और गोडसे के बीच द्वंद का अंत - गांधीवध ( फोटो साभार - गूगल )  
महात्मा गांधी की मौत पर भारत और पाकिस्तान में बसा लगभग हर आम आदमी दुःखी था |

भारत के साथ साथ विदेशों में भी बापू की मूर्तियां हैं और कहीं (भारत में) गोडसे का मंदिर भी है, लेकिन गांधीवध से जो खोया था वह शायद भारत दोबारा कभी नही पा सके....!

 .........गांधीवध पर आधारित

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