Karnataka Democracy : लोकतंत्र की हत्या होने से तो बच गयी लेकिन विकलांग कांग्रेस की बैशाखी के सहारे सरकार कब तक बची रहेगी..?

बीजेपी जायज नहीं थी लेकिन लोकतंत्र की निगाहों से जेडीएस-कांग्रेस सम्बंध भी जायज नजर नहीं आता...

एक ऐसा सवाल जो स्किल्ड 104 सीटों पर बहुमत साबित करने वाली बीजेपी के सामने भी खड़ा था और नॉन-सेमी स्किल्ड 38 सीटों वाली जेडीएस तथा सेमी स्किल्ड 78 सीटों वाली के सामने भी खड़ा है कि विकलांग कांग्रेस की बैशाखी के सहारे कब तक कुर्सी के कुरैशी बने रह पाएंगे जेडीएस मुख्यमंत्री ? पूर्व कर्नाटक मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के सामने ये सवाल इसलिए भी रहा क्योंकि वो कोई भी कार्यकाल पूरा नहीं कर सके थे | और हाल में ही 2 दिन के नायक मूवी के अनिल कपूर का रिकॉर्ड तोड़ पुनः सत्ताविहीन हो गये | यदि सत्ता के पूर्ण सुख का आंकलन करें तो मात्र कर्नाटक में सिद्धारमैया को छोड़ कर किसी को भी कार्यकाल पूरा नहीं हो सका है |

साहेबान कर्नाटका चुनाव अभी खत्म नहीं हुआ है 
 खैर, बीजेपी के जबरदस्ती की सरकार को गिरा कर जेडीएस-कांग्रेस “अपने मुंह मियां मिट्ठू” वाली कहावत के अनुरूप लोकतंत्र की हत्या होने से बचा लिया | भले ही 201 सीटों में 147 सीटों पर जमानत जब्त करवाने वाले दल का नेता वजीर-ए-आला के ख़िताब से नवाजा जायेगा | जहां एक तरफ जेडीएस मात्र कांग्रेस को चुनाव हराने के उद्देश्य से चुनावी रण में उतरी थी, आज उसी के साथ सत्ता की साझेदारी कर रही है |

येदियुरप्पा से तो संभव नहीं हो बहुमत साबित करना लेकिन कुमारस्वामी की बहुमत की दिवार पुरे पांच साल तक टिकी रह सकेगी वो भी तब जब बीजेपी के मुंह से निवाला छीन के खाया गया हो ? इस पर संचय है थोड़ा |  ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि कांग्रेस का मिशन कामयाब हो चुका है | विकलांग कांग्रेस बैशाखी के सहारे मात्र बीजेपी को रोकने तक ही सीमित है |   इन कवायदों में उसका भी अपना इतिहास रहा है कि जब 1979 में चौधरी चरण सिंह प्रधानमंत्री तो बन गये लेकिन विश्वासमत से पहले ही हथियार डाल देने पड़े | तब इंदिरा गांधी का तर्क रहा कि कांग्रेस का सपोर्ट सिर्फ मोरारजी देसाई की सरकार गिराने तक था, न कि नयी सरकार चलाने देने के लिए |

सरसरी निगाहों से देखा जाये तो कर्नाटक में भी कांग्रेस का मकसद लगभग पूरा हो चुका है | आखिर कांग्रेस ने कुमारस्वामी को सपोर्ट भी तो सिर्फ बीजेपी को रोकने के लिए ही दिया हैं ना कि सरकार में बने रहने के लिए | रनरअप कांग्रेस ने मुख्यमंत्री की कुर्सी भी इसीलिए कुर्बान कर दी कि उसको भी पता था कि कुमारस्वामी बगैर मुख्यमंत्री पद के मानने वाले नहीं हैं जैसा कि उन्होंने वोट गिनती होने के दिन बोल दिया था कि 35 के ऊपर गये तो समर्थन देंगे नहीं बल्कि मांगेंगे | कांग्रेस यह जानती थी कि अगर जेडीएस को बड़ा ऑफर नहीं दिया तो कुमारस्वामी का बीजेपी से गठजोड़ होने में देर नहीं लगेगी | क्योंकि जितने सुलझे सम्बंध जेडीएस के बीजेपी के साथ रहे हैं उतने विपरीत संबंध उसके कांग्रेस के साथ रहे हैं | कांग्रेस ये भी अच्छी तरह जानती थी कि बीजेपी तो कुमारस्वामी को सीएम की पोस्ट देने से रही | भले ही डिप्टी सीएम बनाने के पेशकश कर देगी | यही सब सोच कर कुमारस्वामी के सामने चारा फेंका गया और उन्होंने बिना किसी शर्तिया मसले के काबुल भी कर लिया | कुमारस्वामी का जितना इस्तेमाल कांग्रेस ने करना था वो कर भी लिया लेकिन अब फिलहाल इससे ज्यादा मुमकिन नहीं है | कांग्रेस ने पहले सरकार बनाने के लिए कोई शर्त नहीं रखी थी | लेकिन अब मंत्रिमंडल में हिस्सेदारी टकराव का केंद्र बन सकती है |
हो सकता है दोनों पक्ष निजी हित का ध्यान रखते हुए मंत्रिमंडल मतभेद को टालने की कोशिश भी करें - और पहले की तरह ही कुछ दिन और समझौता कर लें, लेकिन फिर भी बात वहीं अटक जाती है - आखिर कब तक...?

शायद पुरे पांच साल तो नहीं क्योंकि जेडीएस का इतना भी छोटा वर्चस्व नहीं रहा अब कि कांग्रेस को बात-बात आंख ना दिखा सके |

फिर भी आखिर कुमारस्वामी कब तक ?

येदियुरप्पा बिना बहुमत साबित किये भी कन्फर्म थे कि उनको शपथ कब लेनी है लेकिन कुमारस्वामी के शपथ को लेकर पहला कन्फ्यूजन तो तारीख को लेकर हो चुका है | पहले घोषणा हुई कि कुमारस्वामी 21 मई को शपथ लेंगे | उसके बाद बताया गया कि 21 नहीं, बल्कि वो दो दिन बाद 23 को शपथ लेंगे | वैसे इस बारे में एक वाजिब कारण सामने आया है | दरअसल, 21 मई को राजीव गांधी की पुण्यतिथि होती थी , इसलिए शपथग्रहण दो दिन के लिए टाल दिया गया | इसी बीच कुमारस्वामी दिल्ली कांग्रेस के गलियारे में टहल भी आये | 

कुमारस्वामी दिल्ली कांग्रेस के गलियारे में
फ़िलहाल मान लेते हैं कि कुमारस्वामी सदन में विश्वासमत हासिल भी कर लेते हैं | कैबिनेट भी तैयार हो जाती है | दोनों दलों के नेताओं को मंत्रियों के विभागों में बंटवारा मिल भी जाता है | फिर भी क्या सरकार कार्यकाल पूरा कर पाएगी ?

कुमारस्वामी के कार्यकाल पर सवाल उठना इसलिए भी जरूरी हो गया है कि येदियुरप्पा ने अपने त्यागपत्र-भाषण में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कॉपी करने की कोशिश तो की ही, लेकिन जाते-जाते 'लेने के देने' वाले अंदाज में एक गुप्त चेतावनी भी छोड़ गये | अपने भाषण के आखिर में येदियुरप्पा ने कहा, "....जब भी चुनाव होंगे मैं तैयार रहूंगा | लेकिन अभी मैं जा रहा हूं |"

येदियुरप्पा बने मात्र थे दो दिन के मुख्यमंत्री 
सभी समीकरण से कर्नाटक की सियासत को हल किया जाये तो जेडीएस और कांग्रेस के संबंध मात्र मज़बूरी का है | दूसरी तरफ येदियुरप्पा का नया मिशन कर्नाटक की नयी सरकार में सकारात्मक विपक्ष का होने वाला है, हाल-फिलहाल की हरकतों से ऐसा तो दिखाई तो नहीं देता | पिछले चार साल के आंकड़ो में अरुणाचल से उत्तराखंड तक बीजेपी के सत्ता लालसा को देखें तो कर्नाटक का भविष्य अंधेरे में ही दिखता है | ये तो 2017 का विधानसभा चुनाव आ गया वरना सीबीआई के नोटिसों ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री कुर्सी पर हरीश रावत को कितने दिन चैन से बैठने दिया ?

फ़िलहाल कर्नाटक का चुनाव अभी खत्म नहीं हुआ है बल्कि यहां अभी अंतरिम चुनाव चल रहे हैं | बीजेपी के पास अभी भी मौका है कि वो अपने समीकरणों में जेडीएस-कांग्रेस के विधायकों को उलझा दे या बिहार जैसी स्थिति पर निगाहें बांध कर रखे | क्योंकि यह गठबंध जायज तौर पर भी नाजायज ही है |

अंत में, जेडीएस को चंद अल्फाज अदा करना चाहता हूं कि –

ऐसे आलम में बहुत पेशकशें होंगी तुम्हें ,तुम मगर अपनी रिवायत से न फिरना हरगिज़...
शाह की कुर्सी में ढलने से कहीं बेहतर है, किसी फ़ुटपाठ के होटल का वो टूटा हुआ तख़्ता बनना..!

Post a Comment

0 Comments