Karnataka ka Natak : संवैधानिक पदों पर भी केंद्र सरकार ने फील्डिंग जमा रखी है...

सत्ता की लालसा में राष्ट्रीय दलों द्वारा आवाम को निवाला बनाया जा रहा है...?

जो गलतियां पहले हो चुकीं हैं उनको दोहराना क्या लोकतंत्र के परिपेक्ष्य से पक्ष-विपक्ष के लिए वाजिब हैं ...?



इसमें कोई दोहराए नहीं कि कर्नाटक की जनता ने कांग्रेस को नकार दिया है और कांग्रेस की समाज को बांटकर राज करने की नीति बैकफुट पर आगयी है और क्षेत्रीय दल जेडीएस को भी जनता ने उसी तरह नकारा है जैसे उत्तर प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव में सपा-बसपा को नकारा था, क्योंकि क्षेत्रीय दल एक हद तक राज्य के विकास के लिए सार्थक सिद्ध होते हैं | जब उनको लगता है कि जनता उनके विकास कार्य को पसंद करने लगी है तब वही करते हैं जो राजतन्त्र में जन्मा तानाशाह करता है | उसके बाद उनके सत्ता विकासशील वर्चस्व पर सेंध लगाना नामुमकिन तो नहीं लेकिन बहुत बा-मुश्किल हो जाता है | लेकिन वर्तमान में हम भारतीय संविधान के लहजे की बात करें तो उसमें दो दलों के विधायकों की टोली को मिलाकर यदि बहुमत सिद्ध हो सकता हो, तो वे बिना किसी बाधा के सरकार बनाने के दावे को सदर-ए-रियासत (राज्यपाल) सामने पेशगी की जा सकती है |

लेकिन ऐसी परिस्थितियों में सदर-ए-रियासत की भी अग्निपरीक्षा है, क्योंकि एक तरफ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर बीजेपी उभरी तो है, जिसके पास प्रत्यक्ष तौर पर बहुमत नहीं दिखाई दे रहा और ना ही विधायक पैदा कर सकती है मात्र 15 दिन के अंतराल में, क्योंकि यदि वो जेडीएस या कांग्रेस के विधायकों पर भी सेंध लगाती भी है तो भी उपचुनाव के दावेदारी से पहले अपने दल का हिस्सा नहीं बना सकती | अर्थात दोनों माईनों में बीजेपी को बहुमत साबित करने के लिए येन-केन-प्रकारेण की नीति से विपक्षी दलों के विधायकों को आर्थिक मनोबल को तोड़ना पड़ेगा, यदि विधायकों की गुप्त निजी नीलामी भी होती है तो यह आवाम के नजरिये से आवाम के प्रति छल मात्र ही कहलायेगा | जो कि लोकतंत्र के जनादेश का उपहास मात्र भर होगा | ऐसा हमने उत्तराखंड की पूर्व हरीश रावत सरकार में भी देखा है |  यदि दुसरे मोर्चे पर देखा जाये तो विपक्ष पाले में चुनाव हारने वाली कांग्रेस और जेडीएस हैं, जिनके पास मिलकर सरकार बनाने के लिए पर्याप्त बहुमत दिखाई दे रहा है | जो सता बनाने के असल हक़दार भी हैं | भले ही आवाम ने बीजेपी को ज्यादा विधायकी पद अदा किये हैं लेकिन जीत के अंतर से 8 कदम दूर भी रखा है | सरसरी निगाह से देखा जाये तो कर्नाटकिय आवाम ने बीजेपी को लाखों वोटों के अंतर से सत्ता बनाने की कवायद से दूर रखा है | यदि लोकतंत्र के आंखो से देखा जाये तो कांग्रेस-जेडीएस नहर के जिस मुहाने पर खड़े हैं वहीँ से कुछ कदम आगे बीजेपी भी खड़ी है | उसने भी नहर पार नहीं की है |

सत्ता की लालसा में लोकतंत्र के हत्यारे 
 लेकिन अब या तो कांग्रेस या जेडीएस के कुछ विधायक बीजेपी से मिल जाएं और बागी घोषित हो जाये | उससे बहुमत साबित करने का अंतर कम हो सकता है, या फिर पूरा जेडीएस ही कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने को नकार दे ..? और बीजेपी के साथ साझा सरकार बनाने की तैयारी करे | लेकिन दूसरी परिस्थिति किसी भी समीकरण से संभव नहीं लगती | इसलिए बीजेपी के हक में यदि पहली परिस्थिति संभव होती है, तो मेरा निजी विचार यही है कि राजनीतिक शुचिता के लिहाज से यह अच्छा नहीं कहा जाएगा |
लेकिन जिस कदर बीजेपी ने संवैधानिक पदों पर फील्डिंग जमाई है और सदर-ए-रियासत ने चुनाव के बाद के गटबंध (जेडीएस-कांग्रेस) को प्राथमिकता ना देकर ज्यादा विधायकों की टोली को सत्ता बनाने की प्राथमिकता दिखाई है उससे यही सिद्ध हुआ है कि ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस‘ |

ऐसा नहीं कि आज से पहले ऐसा कभी नहीं हुआ है | हाल में ही गोवा, मणिपुर, बिहार विधान पटल की बात करें तो वहां भी प्रथम श्रेणी के दल को प्राथमिकता दी जा सकती थी | इसमें सदर-ए-रियासत अपने विवेक से किसी भी पार्टी को न्यौता दे सकता है और संविधान में भी इसका साफ-साफ जिक्र है कि किसी भी वजीर-ए-आला की नियुक्ति सदर-ए-रियासत करेगा लेकिन यदि विवेक ही के केंद्र के अधीन हो तो..?
हम किसी से व्यक्ति विशेष सहमत या असहमत हो सकते हैं, किसी भी दल विशेष के समर्थक या विरोधी भी हो सकते हैं, लेकिन राजनीति में शुचिता बनाए रखने की ज़िम्मेदारी हम सबकी है | क्योंकि आवाम के नजरिये एकल बंधन से गठबंध बेहतर सिद्ध होता है | इसमें किसी दल, व्यक्ति विशेष के अंदर तानाशाही प्रवृत्ति नहीं पनपती | इसीलिए देश-विदेशों में राजतन्त्र को नकार कर लोकतांत्रिक नीति को बहाल किया गया है |

दक्षिण के छोर से सुप्रीम कोर्ट की चौकट पर रात भर चला सियासी नाटक 'कर नाटक' 
 संवैधानिक पदों के बेंच में सुप्रीम कोर्ट की गरिमा...

हम भली-भांति जानते हैं कि हमारी न्याय प्रणाली भले ही दीर्घसूत्री मापदंड की श्रेणी में आती है, लेकिन हमें हमारी न्याय प्रणाली पर पूर्ण विश्वास है कि उसके द्वारा की गयी कोई भी तशख़ीस ग़ैरजानिबदार और निष्पक्ष होती है | लेकिन हमारे राजनीति पदों पर बैठे निजाम, गुलाम न्याय प्रणाली में अवरोध पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ते |
हिंदुस्तान के इतिहास में यह पहली बार नहीं हुआ कि न्याय के विरुद्ध जाकर कोई दल या व्यक्ति विशेष न्याय-प्रणाली के फैसले पर सवाल तलब कर रहा हो | जहां कांग्रेस न्याय के विरोध में सुप्रीम न्यायाध्यक्ष के खिलाफ महाभियोग नोटिस जारी करती है वहीँ दूसरी तरफ अपने हित और सत्ता लालसा के लिए न्याय-व्यवस्था को अपने न्याय के प्रति रात भर चलाने के लिए दांव-पेंच का षड्यंत्र रचती है | इससे यही साबित होता है कि सत्ता की लालसा के लिए कोई भी दल अपने हित में न्याय-व्यवस्था का बलात्कार करने को आतुर है | हमें गैर-राजनीतिक संवैधानिक न्याय प्रणाली के फैसले का सम्मान करना चाहिए | इसके फैसले के खिलाफ जाकर महाभियोग या धरना देकर इसके न्याय का निरादर नहीं करना चाहिए | इससे सुप्रीम कोर्ट की गरिमा आहित ही नहीं होती बल्कि हमारी कुंठा आवाम के सामने सार्वजनिक होती है |

संवैधानिक पदों के हस्ये की जिम्मेदार है कांग्रेस
लोकतंत्र की परिभाषा के अनुरूप संवैधानिक पदों के हस्ये की जिम्मेदार है कांग्रेस...

यदि लोकतंत्र की परिभाषा के अनुसार संवैधानिक पदों के हस्ये की जिम्मेदार देश की सबसे बड़ी और पुराना पार्टी कांग्रेस ही है, क्योंकि आज देश में लोकतंत्र को जो फुटबॉल बनाकर खेला जा रहा है उसके लिए कोंग्रेस ही जिम्मेदार हैमियां की जूती मिंया के सिर वाली कहावत चरितार्थ हो रही है।


क्यों कांग्रेस ने इतने वर्षों तक राज्यपाल ,राष्ट्रपति जैसे पद गैर राजनीतिक व्यक्ति के लिए नही रखे ...?
क्यों कोंग्रेस ने विधायक, सांसदों के लिए दल बदल मामले में मजबूत कानून नहीं बनाए ...?
क्यों दल-बदल करने वाले नेताओं पर लोकतंत्र के हनन के प्रति चुनावी प्रतिबन्ध नहीं लगाया...? 

यदि आज बहुमत के क़रीब होते हुए भी सत्ताधारी दल की गुंडागर्दी के बावजूद कांग्रेस सरकार नही बना पा रही तो इसमें खुद कांग्रेस का ही दोष है, जिसने देश की सत्ता पर अधिकांश समय राज किया है जो क़ानून कांग्रेस ने ख़ुद के फायदे के लिए कभी बनाये थे वो क़ानून आज खुद कांग्रेस पर ही विरोधी दल द्वारा प्रयोग किये जारहे हैं आज उसको मणिपुर गोआ मेघालय कर्नाटक में ये दिन ना देखने पड़ते यदि कांग्रेस विधायक सांसद के लिए दल बदल मामले में मज़बूत क़ानून बनाती तो इस तरह की की घटिया नीतियों से आज देश के लोग त्रस्त न होते ,हर व्यक्ति किसी भी पार्टी की विचारधारा के अनुसार उसे अपना वोट देता है औऱ कल वो विधायक दूसरी पार्टियो में जाकर खुद की बोली लगाकर अपने को को बेच देता है , उसे तो सौ करोड़ मिले वोटर को क्या मिला ??? (यह पैरा उमा भट्ट जी की फेसबुक वाल से लिया गया है)

वर्तमान में समय की नियति और सात्विक लोकतंत्र और संविधान के प्रत्यक्ष प्रमाण के लहजे से यही बेहतर होगा कि बीजेपी इस वक्त कांग्रेस और जेडीएस की सरकार बनने दे | हाल फिलहाल बीजेपी ने भी गोवामणिपुर और मेघालय जैसे छोटे राज्यों में अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई हैजबकि उन राज्यों में कांग्रेस भी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी थी | (भले ही कर्णाटक की तरह जीत से चंद कदम दूर थी) 

अंत में, मेरा भारत के आम नागरिक होने के लिहाज से यही मानना है कि कर्नाटक में जो जनादेश आया है, उसमें आज नहीं तो कल बीजेपी की सरकार बनाने में कामयाब जरुर होगी | कांग्रेस और जेडीएस की सरकार पांच साल नहीं चल पाएगी, क्योंकि बहुत से समीकरण हमने विभिन्न राज्यों में बनते-बिगड़े देखे भी हैं | ये दोनों विपरीत दल पांच साल तक अपने विधायिका की खेती में बाढ़ करने सक्षम नहीं दिख रहे | क्योंकि यह भी बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए आनन-फानन में बिना किसी ताल-मेल के एक दुसरे पर विश्वास कर रहे हैं | ऐसी स्थिति में अगर बीजेपी अभी सरकार बनाने का दावा छोड़ भी देती है, तो कुछ समय बाद उनको वहां सरकार बनाने के अवसर प्राप्त हो सकता है | इसलिए बीजेपी को खरीदफरोख्त की शतरंज नुमा चाल ना चल कर सही समय का इंतज़ार करना चाहिए ।

क्योंकि किसी शायर राजनीतिक परिदृश्य से कहा है कि –

जम्हूरियत इक तर्ज़-ए-हुकूमत है कि जिस में, यहां बंदों को गिना करते हैं तौला नहीं करते...

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