केदार घाटी आज भी केदार आपदा की सुनामी
से बाहर नहीं निकल पाई है l आज भी उस घटना के अवशेष और समस्याएं यहां पूर्ण रूप से
देखी जा सकती हैं l इसी आपदा की घटना से जुड़ी केदारघाटी के तरसाली गांव की कहानी है l जहाँ केदार आपदा के बाद रास्ता बुरी तरह
क्षतिग्रस्त हो गया था। लेकिन आज तक किसी ने सुध नहीं ली है। बीते 5 वर्ष से इस गांव के
नौनिहाल घने जंगल के रास्ते स्कूल जा रहे हैं जहाँ जंगल में जंगली जानवरों का खतरा
भी होता है । इसलिए गांव के नौनिहालों ने इस भविष्यकारी सुविधा के लिए मुख्यमंत्री
त्रिवेंद्र सिंह रावत व जिलाधिकारी मंगेश घिल्डियाल से सडक़ स्वीकृति की गुहार
लगाई है।
कि “ सर,
हमारे गांव के लिए सड़क मंजूर करा
दीजिए...”
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शिक्षा के स्तर के और पलायन की जड़ों ने
पहाड़ को जहाँ जकड़ रखा है वही दूसरी तरफ तरसाली गांव पूजा व आरती सहित 10 छात्र-छात्राओं हैं, जो तरसाली गांव से जीआईसी फाटा तकरीबन 6.5 किमी जंगलों से होकर
पैदल पढने के लिए जाते हैं l रास्ता ना होने की वजह से इन नौनिहालों का कहना है कि
सुबह के सुबह में 5.30 बजे घर से निकलना होता है। इस दौरान रास्ते में वन्य जीवों का
डर रहता है। यही स्थिति दिन के स्कूल में छुट्टी के बाद होती है।
राज्य निर्माण के बाद से तरसाली गांव के
20 परिवार लोग इस आश में जी रहे हैं कि उनके गांव में सड़क आएगी l लेकिन आज भी घर तक
पहुंचने के लिए फाटा से एक तरफा 6.5 किमी पैदल नाप रहे हैं,
जिसमें 3.5
किमी खड़ी चढ़ाई वाले जंगल का रास्ता भी
है। ऐसे में उन्हें खासी दिक्कत होती है। जून 2013
की आपदा में यह रास्ता बुरी तरह
क्षतिग्रस्त हो गया था। लेकिन आज तक किसी ने सुध नहीं ली है। ग्रामीण व स्कूली
बच्चे रास्ते में कई जगहों पर घास पकडक़र आगे बढ़ते हैं। पैदल मार्ग पर दो तरफा
खतरा बना है। कब कहां पर पैर फिसल जाए और कब,
कोई जंगली जानवर हमला कर दें, कहा नहीं जा सकता।
वर्ष 2015 में तत्कालीन विधायक शैलारानी रावत को फाटा से गांव तक हल्का
मोटर मार्ग निर्माण का प्रस्ताव सौंपा था। उन्होंने लोनिवि को दिया, जिस पर आज तक शासन
स्तर से कार्रवाई नहीं हो पाई है।
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