वेस्ट यूपी के जिले होंगे उत्तराखंड में शामिल …?

कुछ कहावतों का तुकांत संदर्भ भले ही अनुचित हो लेकिन उनका स्तिथि के मुताबिक अर्थ तक़रीबन सही ही होता है जैसे कि .........
“ विनाश काले, विपरीत बुद्धि " इत्यादि सम्बंधित
अभी तीन माह पहले की ही बात थी कि सोशल मीडिया पर वेस्ट यूपी के जिलों के हरियाणा, उत्तराखंड और दिल्ली में शामिल करने के मेसेज वायरल हुए थे। तब इसकी गूंज लखनऊ और देहरादून में सीएम के दरबार तक पहुंची थी। दोनों तरफ से मेसेज के सही नहीं होने की दलील दिए जाने से मामला शांत हो गया था।
उसके बाद फिर एक बार माननीय वन मंत्री व कोटद्वार विधायक डॉ हरक सिंह रावत ने भी बिजनौर के 76 गाँव को उत्तराखंड में शामिल करने की पैरवी की थी l लेकिन अब माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड के बयान से एक बार फिर सियासत होली के रंगों में बहुरंगी हो रही है l
क्योंकि माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड ने सहारनपुर को उत्तराखंड में शामिल करने की मांग की है l
गौरतलब है कि माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड, यूपी के सहारनपुर में बालाजी धाम मंदिर के एक कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे थे । जहाँ उन्होंने कहा कि सहारनपुर को उत्तराखंड में शामिल करने पर उन्हें काफी खुशी होगी। क्योंकि वेस्ट यूपी के इस जिले को उत्तराखंड में शामिल करने की मांग बरसों पुरानी है। सहारनपुर से उत्तराखंड के सामाजिक और व्यवसायिक रिश्ते हैं।
उन्होंने कहा कि सहारनपुर को उत्तराखंड में शामिल किए जाने की कवायद जारी भी है। जब उत्तराखंड बना था, तब राज्य आन्दोलनकारी रहे रावत जी भी सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाना चाहते थे, लेकिन तब यह नहीं हो सका था। उसी समय से सहारनपुर को उत्तराखंड में मिलाने की मांग चली आ रही है। फ़िलहाल इस पर अभी चैंबर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट आनी है, इस रिपोर्ट के अनुसार जो निर्णय होगा वह मान्य होगा।
सियासत के इसी रंग ने पहाड़ के परिसीमन पर कभी भी विचार नहीं किया l
उत्तराखंड राज्य आन्दोलन मात्र अलग राज्य की मांग हेतु नहीं था बल्कि अपनी सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखने, पहाड़ के विकास को पुरजोर करने और पहाड़ की आर्थिक व्यवस्था को मजबूती देने के लिए बना था l उत्तराखंड राज्य आन्दोलनकारियों को मात्र पहाड़ी क्षेत्र को ही राज्य बनाने की मांग थी l आन्दोलनकारियों के अनुसार तो उधमसिंह नगर और हरिद्वार के कुंभ को छोड़ पुरे हरिद्वार को उत्तराखंड में मिलाने की मांग नहीं थी l
लेकिन नेताओं ने हमेशा अपने निजी स्वार्थ हेतु पहाड़ और मैदान के विकास में तुलना रखी l राज्य निर्माण के बाद 2002 के पहले विधानसभा चुनाव से पहले 2 विधानसभा शीटों को खत्म कर दिया गया l और आज ही कुछ विधानसभा शीटों पर परिसीमन की तलवारें लटक रही है l जैसे जैसे पहाड़ पलायन कर रहा है वैसे-वैसे उत्तराखंड मैदान बनते जा रहा है और मैदान तक ही सिमट रहा है l
जहाँ एक तरफ बीजेपी और कांग्रेस गैरसैण को पहाड़ की राजधानी बनाने के नाम पर छलावा कर रही हैं वहीँ दूसरी तरफ युपी के जिलों को उत्तराखंड में शामिल करके पहाड़ और उसकी अस्मिता के साथ अपना सियासी खिलवाड़ कर रहे हैं l
शायद, उन 42 शहीदों की शहादत, उन माँ-बहनों की अस्मिता, उन माताओं के आँखों के तारे और एक सुहागन का सिंदूर इसलिए नहीं उजड़ा था की हमारे इमाम उनकी शहादत से मिले राज्य का अपने अनुसार दुरुप्रयोग करें l
अब भी वक्त है हमारे नेताओं के पास वरना................


प्रेरणा शहीदों से नहीं लेंगे तो ये शहादत आजादी ढलती हुई साँझ हो जाएगी
और ना पूजे गये , वीर तो सच कहता हूं कि पहाड़ की नौजवानी बाँझ हो जाएगी l

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