PM Candidate : लोकसभा चुनाव जीते तो बनूंगा प्रधानमंत्री...?

सवालातों का जवाब सपने में नहीं दिया जाता और हकीकत से पर्दा भी नहीं किया जाता...

 Post by : हिमांशु पुरोहित  'सुमाईयां '

यदि कांग्रेस का आजादी के बाद का इतिहास खंगाला जाये तो कांग्रेस परिवारवाद, वंशवाद की पूंजी का एक विस्तृत स्वरूप है | वैसे मेरा परिवारवादी या वंशवादी अर्थ का सूचकांक मात्र कांग्रेस नहीं बल्कि सभी दल हैं कि देश में सभी राजनीतिक दल परिवारवादी, वंशवादी दलदल के ही रूप हैं |

फ़िलहाल देश के सबसे बड़ी लोकतांत्रिक, ऐतिहासिक दल कांग्रेस की बात करें तो महात्मा गांधी जी के बाद दत्तक गांधी परिवार" में चाचा नेहरुइंदिरा जी और राजीव जी के बाद राहुल जी भी स्वयं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर चुके है | हां, यदि अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाये तो सोनिया जी भी दस साल देश की प्रधानमंत्री रही हैं यह अलग बात है कि उनका नाम कार्यवाहक की श्रेणी में भी नहीं लिखा गया | इसप्रकार के परिवारवादी या वंशवादी या अधिकारवादी दलदल में कांग्रेस की सियासी ज़मीन बंजर होती जा रही है | यदि गत चुनावों को देखा जाये या वर्तमान में जहां भी कांग्रेस सत्ता में है, वहां दत्तक गांधी परिवार" की पकड़ कमजोर है | उदाहरणतः कर्नाटक जहां सिद्धारमैया की चलती है, पंजाब जहां कैप्टन अमरिंदर सिंह की कप्तानी चलती है, या सहयोगी दलों के संगठन में भी कांग्रेस को कोई इतना भाव नहीं देता| उदाहरणतः अखिलेश, माया, ममता आदि भी कांग्रेस को छकाने में कोई कसर नहीं छोड़ते | पूर्ववर्ती कांग्रेस का नेतृत्व के तराजू में यदि नए नवेले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल जी के नेतृत्व को तोला जाये तो किसी भी समीकरण, दिशा या दशा से उनके अंदर संगठन, एकत्रीकरण या युवाओं को कनेक्ट करने की क्षमता ना के बराबर है, वहीं दूसरी तरफ सत्ता के केंद्र में स्थापित जीवन के 6 दशक पार और राजनीति के 3 दशक का अनुभव प्राप्त मोदी भलिभांति जानते हैं कि संगठन, एकत्रीकरण या युवाओं को कैसे कनेक्ट किया जाना चाहिए, भले में ही उसमें इतिहास को रेनोवेट और बनाने वाली फैक्ट्री के मेटेरिअल का उपयोग हो रहा है | आगामी कर्नाटक के चुनाव में यह साफ देखने को मिल रहा है कि राहुल जी जनमानस से संवाद की धुरी स्थापित करने में नाकामयाब ही साबित हो रहे हैं | विभिन्न प्रकरणों की समीक्षा की जाये तो राहुल जी का होमवर्क या स्कूलवर्क दोनों ही अगामी विधानसभा चुनावों और लोकसभा चुनाव के लिए शून्य स्तर का शिकार है |
लेकिन यदि द्विपक्षीय देखा जाये तो मोदी जी का होमवर्क या स्कूलवर्क भले ही राहुल जी बेहतर हो लेकिन उसमें इतिहास को रेनोवेट और बनाने वाली फैक्ट्री के मेटेरिअल का बखूबी इस्तेमाल हो रहा है | जिसका उदाहरण कर्नाटक में देखा गया है | जहां एक तरफ बीजेपी नेहरुराग अलाप रही थी वहीँ जिन्ना का जिन्न भी बीजेपी के चिराग से बाहर निकल चूका है|

लोकसभा चुनाव जीते तो बनूंगा प्रधानमंत्री...?
खैर, जिस प्रकार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल जी, मोदी जी पर निजी हमले करते हैं, उससे कांग्रेस को कोई फायदा नहीं मिलने वाला बल्कि इसका खामियाजा कांग्रेस गत चुनावों में भुगत चुकी है | कई प्रकरण में कांग्रेस ने धर्म, जाति या फिर हाल में घटित कठुआ गैंग रेप मामला हो या दलित प्रकरण, कांग्रेस ने समाज का ध्रुवीकरण करने का प्रयास किया है | इसका सीधा-सीधा फायदा बीजेपी को ही मिला क्योंकि ऐसे अपवादित विवादों के बाद जन सामान्य के मुद्दे ओझल हो जा रहे हैं | जहां कांग्रेस के सुल्तान को देश में जन समस्या के मुद्दों को उठाना चाहिए था वहां वो जाति-धर्म का कार्ड खेलते नजर आते हैं | हाल ही की गैर-वाजिब घटना जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ महाभियोग लाने का विपक्ष का फैसला भी निहायती देश की न्याय व्यवस्था की प्रतिष्ठा पर अपमान करने मात्र भर था | जहां उपराष्ट्रपति के बाद सर्वोच्च न्यायालय की पीठ ने भी महाभियोग के इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया था यहां कांग्रेस और उसके नये सुल्तान की फजीहत मात्र ही हुई | सरकार या मात्र मोदी को घेरने के लिए माननीय सर्वोच्च न्यायालय की संप्रभुता पर हमला या उस पर यकीं करना कहां तक जायज है ?

शशि थरूर भी कांग्रेस पक्ष से प्रधानमंत्री की दावेदारी का पक्ष रख चुके हैं |
यदि देश के किसी भी आम नागरिक (जो मात्र आम नागरिक हो, किसी दल इत्यादि का भक्त नहीं) से सवाल किया कांग्रेस की किरकिरी और फजीहत का जिम्मेदार कौन है ? तो इसका बिना सोच विचार के सीधा सा जवाब होगा कि राहुल जी | खुद कांग्रेस के अंदर भी राहुल जी को ना-पसंद करने वाले कई नेता और कार्यकर्त्ता हैं | जो सोशल मीडिया पर शशि थरूर, सिंधिया, मनीष तिवारी आदि बड़े नेताओं के नाम प्रधानमंत्री पद के लिए सुझाते रहते हैं और राहुल जी की मूढ़ता व शुन्यता पर सवाल उठाते रहते हैं | ऐसा नहीं कि कांग्रेस में प्रधानमंत्री के लिए चेहरों का आभाव है लेकिन आनुवंशिक राजनीति का झंडा भी तो लहरना चाहिए ना | राहुल जी जो सत्ता के सर्वोच्च सिंहासन पर बैठना चाहते हैं |अपनी सुल्तानगिरी और सिपहसालार एरा में कई बार औंधे मुंह गिरने के बाद 2019 का रण जितना चाहते हैं | लेकिन जीत की इस अंधी ललक में वो यह भूल जाते हैं कि विजय के लिए एक संगठित टीम, विचारों की कदर, बड़ो का सम्मान आदि की दरकार होती है | होमवर्क और मजबूत कैप्टनसी के बिना जंग नहीं जीती जातीं | बेवजह की वाद-विवाद में फंस कर प्रतिष्ठा भी नहीं बचती | अफसोस कि राहुल गांधी कमजोर कैप्टनसी, वाद-विवाद के ज्ञान और असंगठित टीम के बल पर 2019 का समर फतह करना चाहते हैं ? लेकिन मेरे हिसाब यह उनका खुद का पकाया हुआ ख्याली पुलाव के अलावा और कुछ नहीं |
गत वर्षो को देखा जाये तो कांग्रेस का आनुवंशिक कुनबा (कांग्रेस नहीं) सिमटता चला जा रहा है | 2014 में कांग्रेस पार्टी करीब एक दर्जन से अधिक राज्यों में सरकार चला रही थी | मौजूदा दौर में केवल 3 राज्यों में सत्ता सिमट चुकी है और कुछ राज्यों में क्षेत्रीय दल के सहयोग से राज्य सरकार का हिस्सा और किस्सा बनी हुई है |

मुख़ालिफ़तीय विपक्ष के रुप में अब तक का शून्य सरदार...

जब राहुल गांधी कांग्रेस उपाध्यक्ष थे, उस समय भी कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं उनके प्रति दवाबी सम्मान था | उनके उपाध्यक्ष पद के कार्यकाल में उनकी कांग्रेस के विस्तारिकरण की कोई खास उपलब्धि नहीं रही | हर मोर्चे पर विपक्ष के रुप में भी कांग्रेस और राहुल का नेतृत्व फेल ही हुआ है | जब राहुल उपाध्यक्ष और उसके अब अध्यक्ष पद पर आसीन है तो युवाओं को उनसे उम्मीदें थीं कि वे जनमानस से जुडी समस्याओं के मुद्दों को उठाएंगें परंतु ऐसा किसी भी पटल पर देखा नहीं गया चुनावी लाफवाजी को यदि उपेक्षित रखा जाये तो | देखा जाये तो संसद की कार्यवाही भी बाधित ही रही लेकिन इसमें विपक्ष से के साथ सत्ता का भी उतना ही दोष है | फिर भी विपक्ष इसमें बाधा उत्पन न कर बाधा का निवारण सत्ता के साथ करती तो आम जनमानस तक कांग्रेस की छवि में सुधार हो सकता था | वहीं राहुल जी का एक अपरिपक्वता बयान कि मोदी उनके सामने 15 मिनट भी मुद्दों पर बोल नहीं पाएंगे | यदि रविश कुमार , पत्रकार वाजपेयी इस तरह का सवाल करते तो मेरे राजनीतिक लहजे में यह वाजिब सवाल था लेकिन मानसिक अपरिपक्वता का कोई अपवाद इस तरह के सवालात करे तो इसको राजनीतिक लहजे में जायज तो बिल्कुल भी नहीं | वे मोदी से पंद्रह मिनट मांग रहे हैं जबकि पिछले कुछ दिनों में जनता के बीच वे पंद्रह घंटों से ज्यादा बोल चुके हैं | यदि वे चाहते तो जन मुद्दों को उठाकर सरकार को कठघरे में खड़ा कर सकते थे | चुनाव के दौरान तो जनमानस के मुद्दों पर बात होनी चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है| हाल में ही कर्नाटक के चुनाव में रेड्डी बंधुओं पर प्रहार करके उन्होंने बीजेपी पर भ्रष्टाचार का आरोप मढ़ा |लेकिन यह भूल गये कि यही रेड्डी बंधु पूर्व मुख्यमंत्री उत्तराखंड कांग्रेस श्री बहुगुणा जी और श्री रावत के सानिध्य में फल फुल रहे थे | जिन्होंने देवभूमि उत्तराखंड में धारी देवी डेम का निर्माण किया था | कांग्रेस ने भी कई दागियों को टिकट दिए हैं | लेकिन वो इस पर वे मौन हैं | मालूम हो कि 2014 के आम चुनाव में भ्रष्टाचार के जनआंदोलन ने ही कांग्रेस की जमानत तक जब्त कर दी थी | कांग्रेस के खिलाफ बने एंटी इनकमबेंसी के माहौल में बीजेपी सत्ता में आई | खैर राहुल की बार-बार भूल करने की फितरत रही है | वे आम इन्सान की तरह ही गलती करते हैं लेकिन गलतियों से सीखते नहीं हैं | यही उनके अंदर पक्ष के लिए खूबी और विपक्ष के लिए श्राप है | जाति-धर्म के प्रति तुष्टीकरण की नीति कांग्रेस की रही है | कर्नाटक के चुनाव से कुछ दिन पहले कांग्रेस ने लिंगायतों को अलग धर्म का दर्जा देने की घोषणा की ? हिन्दुओं से पृथक करके लिंगायतों का ध्रुवीकरण किया गया | जानकारी के लिए कंठस्त करले कि कर्नाटक में बीजेपी के मुख्यमंत्री के उम्मीदवार येदियुरप्पा लिंगायत समुदाय से ही आते हैं | इसलिए कांग्रेस द्वारा लिंगायत कार्ड खेला गया | यही नहीं इससे पहले भी 2014 के लोकसभा चुनाव समीप आने पर कांग्रेस सरकार ने जैनों को अलग धर्म का दर्जा दिया था | आजादी के समर का भी संप्रदायिक इतिहास, सिख दंगो की संप्रदायिक आग की तपिश, 1989 भागलपुर, 1983 नेयली, आसाम आदि दंगे भी किसी से छुपे नहीं हैं | पूर्व कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने भी यह कहा है कि कांग्रेस के शासनकाल में 5000 से अधिक दंगे हुए हैं जिसमें काफी हद तक संप्रदायिक का हलाहल (जहर) था । कांग्रेस ने दंगों की आड़ में ही अपनी राजनीति चमकाई है । इस शर्मनाक इतिहास पर देश की जनता उन्हें माफ नहीं करेगी।

सलमान खुर्शीद के बगावती बोल (फोटो : The Times of India)
इतिहास के पन्नों को पढ़ कर एक बात तो साफ होती है कि कांग्रेस के डीएनए में संप्रदायिकता कूट-कूट कर भरी हुई है और साथ साथ अन्य दल भी इसी मार्ग पर अपनी अपनी सियासी रोटी को पकाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे | धर्म को बांटकर सियासत के दांव-पेच खेले जाते हैं | यहां राहुल गांधी यहां भी चूक कर बैठे | राहुल से उम्मीदें थीं कि वे कांग्रेस की इन वर्जनाओं से कांग्रेस को बाहर निकालेगें और परिवर्तनात्‍मक राजनीति के वाहक बनेगें, किंतु ऐसा न हो सका और होता भी नहीं दिख रहा है |

प्रधानमंत्री मोदी की राह भी आसान नहीं दिख रही है ...!

21वीं सदी के युग में सोशल मीडिया विश्वविद्यालय में विभिन्न राजनीतिक दलों के आईटी सेल्स को इतिहास बनाने और उसको रेनोवेट करने वाली फैक्ट्री में जॉब प्लेसमेंट दिया जा रहा है | जिसमें सभी बेरोजगार राजनीतिज्ञ और कामकाजी वर्ग बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रह है | पक्ष-विपक्ष दोनों इस दौड़ में काफी समय से एक दुसरे को पछाड़ने पर लगे हुए हैं |मोदी जी भी इस रेस में बने हुए हैं जो शायद सोशल मीडिया विश्वविद्यालय से पीएचडी का कोर्स कर रहे हैं | जहां भी देखो चुनावी समीकरण नजदीक आते -आते सभी दल अपनी वैचारिक सोच के अनुसार इतिहास के समीक्षक बन जाते हैं |

बीजेपी का भी सोशल मीडिया विश्वविद्यालय का ज्ञान 
यदि बात मोदी जी की करें तो कर्नाटक चुनाव में मोदी जी भी सोशल मीडिया विश्वविद्यालय में बने इतिहास की फैक्ट्री के समीक्षक की भूमिका में नजर आरहे थे | कर्नाटक चुनाव में अब प्रचार खत्‍म हो गया | चुनावों से पहले परंपरा रही है कि झूठ को कुछ इस तरह बोला जाए कि लोगों को दिग्भ्रमित करे और सच लगने लगे. लोग कही बातों पर आंखें मूंद कर भरोसा करें और जो दल/व्यक्ति झूठ बोल रहा है उसके लिए, उसका फायदा बस इतना हो कि उसे कही बातों से ज्यादा से ज्यादा वोट मिलें और फिर जो हो वो इतिहास कहलाए | इसमें अकेले मोदी ही नहीं बल्कि राहुल भी पूर्ण रूप से समर्पित हैं | कभी कर्नाटक में मोदी जी की बनारस की फोटो वायरल कर दी जाती है तो कभी नेहरु के कथानक का भ्रम फैला दिया जाता है | कभी राहुल ब्रिगेड के लोग सोशल मीडिया विश्वविद्यालय के माध्यम से बीजेपी की करारी हार का जबरदस्त दावा करने पर तुले हुए हैं |

खैर, येन-केन-प्रकारेण जो भी हो, नेहरु व दत्तक गांधी परिवार खानदान की पांचवी पीढ़ी के राहुल पर 132 साल पुरानी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के वजूद को बचाने का संकट है, तो वहीं मोदी और अमित शाह की जोड़ी पूरे देश में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लेकर विजयरथ पर सवार है | ऐसे में अंधो में काना राजा के सिरनामा के अनुसार कैप्टेन राहुल जी के प्रधानमंत्री बनने की लालसा बहुत कम है |

अंततः मेरा राहुल जी से प्रधानमंत्री पद के ख्वाब के लिए यही कहना है कि

ख्वाब उतने देखो, जितना आंखो के देखने का दायरा हो
जागीर नहीं हैसियत देख उतरो सागर में जिसका अपना किनारा हो...!

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