Karnataka Election Final : कर्नाटक ने बड़े गौर से सुनी नेताओं के ‘मन की बात’ – अब कल यानि 15 मई को जनता सुनाएगी अपने 'मन की बात'...


कल होगा कर्नाटक के आने वाले 5 साल के भविष्य का फैसला...

Post By : हिमांशु पुरोहित 'सुमाईयां '

चंद लम्हें बचे हैं कर्नाटक की सत्ता अगले पांच साल किसके निगहबान में रहेंगी, इसका फैसले का गवाह कल यानि 15 मई को लालिमा के परिदृश्य में ढला सूरज होगा | कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2018 के लिए चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है, 223 सीटों पर 12 मई को वोटिंग भी होगयी है | कर्नाटक में 224 सीटें हैं लेकिन एक बीजेपी उम्मीदवार की मौत के कारण वहां चुनाव रद्द हो गया है | अब 223 सीटों वोटों की गिनती 15 मई को होनी है | सत्ता बनाने और बिगड़ने के सारे समीकरणीय असले तैयार हो चुके हैं | सभी दल कर्नाटक की सत्ता का निवाला खाने को लोलुपता हैं | कर्नाटक में सरकार बनाने के लिए जरूरी समीकरण 113 सीटों का है, कर्नाटक के पिछले विधानसभा चुनाव के पन्नों को पढ़ा जाये तो वर्तमान सत्ताधारी कांग्रेस के पास 122 सीटें थी | कांग्रेस को शिकस्त देकर सत्ता हासिल करने को आतुर बीजेपी के खाते में फिलहाल 43 सीटें थी, जबकि तीसरी ताकत जेडीएस (अब किंग मेकर) के 37 विधायक थी | लेकिन संभावना जतायी जा रही है कि किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलकर त्रिशंकु विधानसभा हो सकती है | जिसमें कौन किस की गोदी में बैठेगा इस आधार पर कहना उचित होगा कि राज्य सत्ताधारी कांग्रेस जिसका एग्जिटपोल में भी वर्चस्व दिखाई दे रहा है | जिसने काफी हद तक अपने पूर्ववर्ती शासनकाल में कर्नाटक की जनता का विश्वास जीता है, तो दूसरी तरफ केंद्र में विराजित सत्ताधारी बीजेपी, जिसमें शाह और मोदी की जोड़ी किसी भी राज्य के विधानसभा चुनाव को भेदने का मद्दा रखती है | जो किसी भी लहजे में जोड़-तोड़ के समीकरण से कर्नाटक में सत्ता का निवाला खाने की बखूबी दावेदारी कर रही है | यदि कर्नाटक की विधानसभा चुनाव के तीसरे मोर्चे को देखा जाये तो वहां क्षेत्रीय दल जेडीएस जोड़-तोड़ के समीकरणों की ताक आंख लगाये बैठी है |
अब तक लगभग सभी सियासी उस्तादों, न्यूज़ चैनलों, अख़बार, पत्रिका, न्यूज़ पोर्टल आदि ने कर्नाटक चुनाव के एग्जिटपोल के पत्ते खोल दिए हैं | किसी के अनुसार बीजेपी, सत्ता का निवाला खाते दिखाई दे रही है तो किसी के अनुसार कांग्रेस | कर्नाटक क्षेत्रीय राजनीति से ओत-प्रोत सियासी उस्ताद या न्यूज़ प्लेटफार्म जेडीएस को सत्ता का सरताज बता रहे हैं | वैसे उनका कहना भी अप्रत्यक्ष रूप से 70 फीसदी सत्य ही है क्योंकि इस बार की कर्नाटक विधानसभा त्रिशंकु आकार की बनती नजर आरही है | कुछ बड़े एग्जिटपोलर्स के सांख्यिकी के ग्राफ में, जैसे ‘इंडिया टुडे सर्वे’ के अनुसार कांग्रेस को 90-101 सीटों से संतोष करना पड़ सकता है जबकि बीजेपी के 78 के बीच 86 सिमट जाने का अनुमान है | वहीं कई विधानसभा में लगभग एग्जिटपोल का साक्ष्य कहे जाने वाले ‘चाणक्य सर्वे’ ने भी यह भविष्य-फल दिया है कि लगभग 120 सीटों पर बीजेपी, 73 सीटों पर कांग्रेस और 26 सीटों पर जेडीएस का अभिग्रहण दिखाया है | देश में और भी चुनावी एग्जिट पोलर्स हैं जिन्होंने अपने-अपने आंकड़ों को जनादेश के पटल पर रखा है, लेकिन देश में एग्जिट पोल का प्रभाव काफी असरदार नहीं रहा है | देश में अब तक किसी भी चुनाव में एग्जिट पोल 80 फीसदी विफल ही हुए हैं |

कर्नाटक चुनाव से केंद्र की सत्ता तक...
भ्रष्टाचार पर दोनों दलों का मौनधारण फिर आपसी तू-तू मैं-मैं...

भ्रष्टाचार के मामले में दोनों दल या तो मौनधारण किया या मात्र जनता को गुमराह करने के लिए भ्रष्टाचार के तर्क पर तू-तू मैं-मैं कर जनता को उलझाते रहे | बात यदि रेड्डी भाइयों की सियासी बहाली से जुड़ी बहस पर करें तो कांग्रेस रेड्डी भाइयों पर भ्रष्टाचार का निशाना साधने में लगी हुई है लेकिन भूल जाती है कि यह दोनों भाई कांग्रेस राज में भी कांग्रेस के बैनर तले खूब ऐश में थे | वहीं दूसरी तरफ खुद को भ्रष्टाचार विरोधी का तमगा पह्नाने वाली बीजेपी बेल्लारी के दागी आयरन माफिया के करीबियों को 8 सीटों का उम्मीदवार बनाया गया | रेड्डी भाइयों को अपने समर्थन में रखने का सबसे बड़ा कारण यह भी था बीजेपी का कि बेल्लारी के आसपास के तीन जिलों में इनकी अच्छी खासी पकड़ नजर आती है और इससे आसार बढ़ जाते हैं कि 3 जिलों की 22 सीटों में से बड़ा हिस्सा बीजेपी की झोली में ही जाए |
निष्पक्ष रूप से देखा जाये तो कांग्रेस भी खुद को भ्रष्टाचार विरोधी का तमगा पहनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी | इन्होंने भी भ्रष्टाचार के बिल में कुंडली लगा कर बैठे माइनिंग माफियाओं से जुड़े लोगों को टिकट दिए हैं | ऐसे में कांग्रेस भी भ्रष्टाचार के मुद्दे पर नैतिकता की सरहद पर होने का दावा नहीं कर सकती | दोनों पार्टियों के रणनीतिकारों का मानना है कि इंटरव्यू और प्रेस कॉन्फ्रेंस में कुछ मुश्किल और असहज सवालों का जवाब देना कहीं बेहतर है बजाए इसके कि नैतिकता के पाठ के चक्कर में सीटों को गंवा दिया जाए |

प्रधानमंत्री द्वारा पूर्वप्रधानमंत्री की पत्नी के प्रति अमर्यादित बोल...
छुट-पुट नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक के बिगड़े बोल...

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जो सत्ता हासिल करने के लिए जो मर्यादाएं तार तार की गयी है उससे साबित हो गया है कि कोई भी राजनेता और या राजनीतिक दल सत्ता के लिए वह मंच पर खड़ा हो गाली भी दे सकता है।चुनाव में अपने-अपने बचाव में छुट-पुट नेताओं से लेकर प्रधानमंत्री तक के बोल उखड़े-बिगड़े लगे | कई विपक्षी नेताओं में प्रधानमंत्री और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के भाषणों की किरकिरी की थी तो कहीं स्वतः ही खुद बीजेपी के नेता अपने ही शब्दों की छलरचना में फंसते नजर आये | शुरुआत यदि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से करें तो एक चुनावी में सभा में गलती से उन्होंने यह कह दिया कि कर्णाटक के अंदर अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार यदुरेप्पा सरकार रही है, गालिबन वह उस समय यह भूल गये होंगे कि यदुरेप्पा उनके ही जमावेड़े का एक हिस्सा हैं, हालांकि इसके बाद उन्होंने अपनी गलती में सुधार किया | कर्नाटक चुनाव प्रचार को लेकर बीजेपी की ओर से 400 रैलियां की गयीं और खुद शाह के अनुसार उन्होंने 50 हजार किलोमीटर की यात्रा की है | प्रधानमंत्री मोदी की बात करें तो उनका नेहरु रूपी भ्रम अभी तक दूर नहीं हो सका है | चुनावी रैलियों में उन्होंने कई दफा भगत सिंह, बटुकेश्वेर दत्त आदि के तर्ज पर नेहरु पर निशाना साधा | यहां तक कि प्रधानमंत्री द्वारा पूर्वप्रधानमंत्री की पत्नी का भी नहीं अमर्यादित शब्दों से उवाच किया | प्रधानमंत्री के बिगड़े बोल इतने हावी दिखे कि उन्होंने मुख्यमंत्री सिद्धारमैया को "सिद्धा-रुपैया" तक बोल दिया | प्रधानमंत्री ने ऐसे नेताओं पर प्रहार किए जिन्होंने मोपेड से शुरुआत की थी और अब एक से बढ़ कर एक लग्जरी गाड़ियों पर चलते हैं और आलीशान मकानों में रहते हैं | ऐसे नेता राज्य में सभी पार्टियों में देखे जा सकते हैं | नेताओं की ओर से शान-शौकत दिखाने में आंध्र प्रदेश के बाद कर्नाटक का दूसरा स्थान लगता है | कई चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री जैसे महान पद विराजमान होकर उन्होंने इस पद की प्रतिष्ठा और गरिमा को प्रश्नों के घेरे में खड़ा किया है | देखा जाए तो देश में आज तक के प्रधानमंत्री पद के इतिहास में ऐसा कभी देखा नहीं गया कि कोई प्रधानमंत्री 'प्रचारमंत्री’ पद का पूर्ण रूप से निर्वहन कर रहा है |
वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस भी तीखे हमके के साथ अमर्यादित शब्दों की छलरचना में फंसती नजर आई है | उन्होंने बेतर्क यहां तक कह दिया था कि ‘बीजेपी की सरकार आती है और लोग मरना शुरू हो जाते हैं। कांग्रेस (यूपीए) के शासनकाल से तुलना करते हुए राहुल ने कहा कि 2012 में हमने आतंकवाद खत्म कर दिया था लेकिन 2014 में बीजेपी की सरकार आती है और लोगों का मरना शुरू हो जाता है |’वर्तमान मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने वोट के बाद बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार येदियुरप्पा मेंटली डिस्टर्ब तक कह दिया ' |
यह कोई नई बात नहीं है कि मान-अपमान, छोटी-मोटी नोंक की -झोंक नहीं होती चुनाव के दौरान | लेकिन अब वर्तमान राजनीति में शब्दों की छलरचना का गिरता हुआ स्तर राजनीति के मर्यादा पर सवाल खड़े कर रहा है |

वाद कुछ , अनुवाद कुछ और विवाद कुछ...

ट्रांसलेटर्स ने भूमिका पर अनुवाद का विवाद...

कर्नाटक चुनावी रैलियों में ट्रांसलेटर्स ने राजनीतिक दलों ने भाषण-बाजों की ढंग से खबर ली | हो भी सकता है कि शब्दों के उच्चारण को समझ न सकें हो, लेकिन ऐसा किसी भी परिदृश्य से नहीं दिखाई दिया क्योंकि भाषण की एक ज़ेरोक्स कॉपी पहले ही ट्रांसलेटर्स दी गयी थी | ट्रांसलेटर्स का सबसे बड़ा शिकार हुए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह | ट्रांसलेटर को की वजह से एक दो मौकों पर शाह की जबरदस्त फजीहत हुई जब शाह बोले, अरे राहुल बाबा आप मोदी जी से सवाल पूछ रहे हो ?’ ट्रांसलेशन करने वाली महिला ने कन्नड़ जो बोला उसमें शाह को एक शब्द समझ में आया - 'विश्वगुरु'...| तुरंत शाह के कान खड़े हो गये और उन्होंने बोला कि ,"मैंने कहां विश्वगुरु बोला है...?"  फिर शाह ने अपनी बात जोर देकर दोहरायी ताकि कहीं कोई गलत अर्थ न निकाला जाये | इससे पहले भी एक रैली में तो इससे भी बड़ा झोल हो गया था | सिद्धारमैया सरकार को टारगेट करते हुए शाह बोले, "सिद्धारमैया सरकार कर्नाटक का विकास नहीं कर सकती. आप मोदी जी पर विश्वास करके येदियुरप्पा को वोट दीजिये | हम कर्नाटक को देश का नंबर वन राज्य बनाकर दिखाएंगे |" हिंदी से कन्नड़ में समझाते हुए ट्रांसलेटर ने तो कबाड़ा ही कर दिया, "प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गरीब, दलित और पिछड़ों के लिए कुछ भी नहीं करेंगे | वो देश को बर्बाद कर देंगे, आप उन्हें वोट दीजिये |" एक दो मौकों पर राहुल जी भी ट्रांसलेटर्स से झूझते नजर आये, लेकिन उनके किसी बात का बतंगड़ बनने से बच गया | राहुल जी पहले ही के भांति स्वर-सम्बोधन में झूझते नजर आये जैसा कि वो रोज झूझते रहते हैं | एक रैली में राहुल जी भारत रत्न ‘एम. विश्वेश्वरय्या’ के नाम में उलझते नजर आये | जिस को लेकर राहुल जी की देश भर में जबरदस्त किरकिरी हुई |

 
कांग्रेस के राहुल के साथ-साथ बीजेपी में मोदी-शाह की हुकूमत भी दाव पर...

एक सीधी चुनावी नजर...

बरहाल बात करें राजनीतिक दलों की तो कर्नाटक चुनाव कांग्रेस की प्रतिष्ठा का सबसे बड़ा सवाल बन गया है क्योंकि देश में मात्र तीन राज्यों में कांग्रेस की बिना गठजोड़ की सरकार है जिसमें कर्नाटक भी है जहां कांग्रेस पूर्ण समर्थन के साथ काबिज थी | वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की बात करें तो 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कर्नाटक की 28 सीटों से 17 सीटों पर अपना झंडा बुलंद किया था | इस बार फिर बीजेपी के सामने देश को ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ का संकल्प है लेकिन सिद्धारमैया के वर्चस्व के सामने मोदी और शाह की साख दाव पर है | जहां इस वर्ष के अंत तक या 2019 में लोकसभा चुनाव के तैयारी की पहली एक्सरसाइज कर्नाटक हैं वहीं यह विधानसभा चुनाव बीजेपी की 2019 के दावेदारी और मोदी मैजिक पर सवाल खड़े कर सकता है | वही जेडीएस जैसे क्षेत्रीय दल का भी अपनी राजनीति अहोदे को बचाने का संकट है कि यदि त्रिशंकु जनमत आता है तो उसपर जनता के विश्वास की जवाबदेही का साबुत वो किस बड़े दल से मांगती है | वैसे यह माना जा रहा है कि जेडीएस और बीजेपी का गठबंध चुनावी खेल का एक हिस्सा मात्र है | लेकिन भविष्य के गर्भ छिपी बात और सियासत रंजिस की जानकारी शायद किसी को नहीं |


देखते हैं कल सुबह का सूर्योदय किन नेताओं का राजनीति का सूर्य अस्त करने में अपनी भूमिका निभाएगा ..?

चुनावी समर में सभी नेताओं ने भाषण-बाजी के अपनी अपनी मन की बात जनता के सामने जरुर रखी है | अब चुनावी रैलियां खत्म हो गयी है, भाषणों में चुटकी लेते नेता नहीं दिखेंगे | फिर से अभागे मतदाता ने खुद को भाग्य के हाल पर छोड़ दिया है और शायद रैलियों के दौरान उसकी दिलचस्पी इस बात में ज्यादा थी कि कौन सा नेता उसकी अधिक मदद कर सकता है | लेकिन एक दिन जनता का भी आता है जब जनता अपने मन की बात बतोले नेताओं को बताती है और उनको उनकी हैसियत याद दिलाती है | क्योंकि भाषण देने से लोगों का पेट नहीं  भरता | जनता को सबसे पहले अपने नेता के चुनाव में सावधानी बरतनी चाहिए उसके बाद किसी दागी नेता को किसी भी हालत में सत्ता से बाहर रखना चाहिए | अपने अधिकारों के प्रति सचेत होना चाहिए और Etc..Etc..Etc...

वरना, किसी ने सही ही कहा है सियासत के किरदार को समझ कर कि...

देखोगे तो हर मोड़ पे मिल जायेंगी बिखरी लाशें..

लेकिन ढूँडोगे तो इस शहर में क़ातिल भी न मिलेगा...!

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