Red Fort : धरोहर संवारना आज भी नहीं सीखा भारत ने......

प्रिय मोदी जी,


यह जानकार दुःख हुआ कि केंद्र सरकार ने देश की विस्तृत ऐतिहसिक धरोहरों में से एक लाल किले को एडॉप्ट हेरिटेज स्कीम के तहत डालमिया ग्रुप के गोद में डाल दिया है | यह देश के किसी भी कारोबारी समूह को हासिल सबसे अद्भुत अनुबंध है । 77 वर्ष पुराने डालमिया समूह ने इसे गोद लेकर इतिहास रचा है । यह देश का पहला कारोबारी समूह है जिसने देश की ऐतिहासिक इमारत को पांच साल के लिए गोद लिया है। इसके लिए वह 25 करोड़ रुपये चुकाएगा ।हालांकि, डालमिया समूह में इसके लिए सक्रीय भी है कि लाल किले को कैसे विकसित किया जाए ? निजी डालमिया ग्रुप यहां आगामी 23 मई को काम शुरू करेगा ।

शान-ए-दिल्ली (लाल किला)


लेकिन दुःख का कारण यह है कि क्या हमारी सरकार इतनी लापरवाह या गैर-जिम्मेदार या बे-काबिल या अपने धरोहरों को सँवारने में इस कदर बे-परवाह हैं कि किसी निजी कंपनी के बैनर तले इसको विकसित करने का सौदा(गोद) कर लिया गया..?

क्या भारत के पर्यटन मंत्रालय, संस्कृति मंत्रालय रोजगार के तहत एक कमेटी गठित कर भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण को यह जिम्मेदारी सौंप कर रोजगार के नये अवसर पैदा नहीं कर सकता था..?  
वैसे यह कोई नई बात नहीं कि 'एडॉप्ट ए हेरिटेज’ की स्कीम वर्तमान सरकार द्वारा ही शुरू की गयी है | इससे पहले की सरकारों ने भी देश की सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण की ज़िम्मेदारी सरकार ने निजीकरण के तहत देने की बात कही थी

जिसमे सेल ने दिल्ली के लोदी गार्डेन की इमारतों की मरम्मत तथा साज सज्जा के लिए बनाई गई एक योजना में 10 करोड़ रुपए लगाए थे | इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने कन्हेरी की गुफाओं तथा कोणार्क मंदिर के रिनोवेशनके लिए 25 करोड़ रुपए खर्च करने का निर्णय लिया था | इन दोनों प्रयासों से उत्साहित होकर भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय अब व्यापक स्तर पर बड़े औद्योगिक घरानों तथा व्यापार संगठनों को इस काम में शामिल करना चाहता था |

उसके बाद सरकार ने इसमें खासी दिलचस्पी दिखाई और रिलायंस’, हीरो होंडा, सैमसंग, एमआरएफ, एवीवा,विप्रो,एलजी जैसी कंपनियों को एक पत्र लिख कर देश की विलक्षण सांस्कृतिक धरोहर में संरक्षण और संवर्द्धन में सहयोग देने की अपील की थी | भले ही यह निश्चित रूप से एक सार्थक प्रयास था | देश की सांस्कृतिक धरोहर को बनाए रखने के लिए सरकार ने सन 1996 में नेशनल कल्चरल फंड की स्थापना की है जिसके अंतर्गत औद्योगिक घरानों से यह कहा गया है कि वे उन ऐतिहासिक इमारतों को एडाप्टकर सकते हैं जो भारतीय पुरात्व सर्वेक्षण के अंतर्गत नहीं आती हैं | लेकिन समय बदलने क साथ साथ हमें अपने काम करने के तरीकों में भी बदलाव करना चाहिए था और देश की सभी धरोहरों को जिम्मा पुरातत्व विभाग को सौंप कर विभाग को परिपक्व बनना रोजगार के नये अवसर पैदा करने चाहिए |
खैर, आप तो मोदी जी हो | आप के आगे किसकी चल पाई है अब तक ...फिर भी चंद पंक्तियाँ भेंट करना चाहता हूं आपको कि-

जब बारिश होती है तो पानी को भी लग जाते हैं पांव ...

Script By : Himanshu Purohit

Post a Comment

0 Comments