2012 के बाद से खासकर देश के सबसे बड़े तथाकथित 2G घोटाले के बाद देश में भ्रस्टाचार का मुद्दा देश में छाया रहा l
ये मुद्दा 2014 तक खूब जोरो
शोरों से चला और इसी ने देश में सबसे बड़ा तख्ता पलट किया रामदेव के आन्दोलन के बाद
अन्ना हजारे का लोकपाल के आन्दोलन से देश में ऐसा माहौल बन गया था कि जैसे यदि
लोकपाल नहीं आया तो देश भ्रस्टाचार में डूब जायेगा l आन्दोलन
की आग इतनी फ़ैल गयी कि कांग्रेस ने आखिरकार घुटने टेक दिए और लोग सभा में लोकपाल
बिल पास करवा दिया l मीडिया ने इस आन्दोलन को हवा दी
और फिर अचानक मोदी का चेहरा देश में लांच किया और फिर फीका पड़ गया लोकपाल का
मुद्दा और कहीं हावी हो सका “न खाऊंगा न खाने दूंगा” का नारा और लोगो से उस पर
विश्वास किया l लेकिन 2017 आते-आते भ्रस्टाचार का मुद्दा गायब हो गया और अन्य मुद्दे हावी हो गये क्योंकि
मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से भींड तंत्र कहीं से मैनेज हो गया...!
कुछ रोज पहले की बात है
कि जब उत्तराखंड के वजीर-ए-आला एक अख़बार में जीरो टोलरेंस को लोकायुक्त से बेहतर
बताने की कोशिश कर रहे थे, उन्होंने
कहा कि “ हमने भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की नीति अपनायी है और संस्थागत
भ्रष्टाचार को रोकने में सफल भी हुए हैं l हम भ्रष्टाचार के खिलाफ ऐसा कार्य करेंगे कि जनता को
लोकायुक की जरूरत ही महसूस नहीं होगी “ l यह कोई पहला
मौका नहीं जब वजीर-ए-आला रावत ने अपने एक वर्ष के पट्टे में लोकायुक्त को लेकर
नजरंदाजी रुख अपनाया हो l इससे पहले भी नवम्वर 2017 में ‘उत्तराखंड भवन दिल्ली’ में
उन्होंने प्रेस वार्ता में यह कहा था कि ‘’ उनकी
नीति इस तरह की है कि राज्य को लोकायुक्त की जरूरत ही नहीं पड़ेगी “
l लेकिन वो किसी भी कीमत पर खंडूरीकाल में राष्ट्रपति द्वारा
मिली मंजूरी वाले लोकायुक्त को प्रजा और प्रशासन का हिस्सा नहीं बनायेंगे l उत्तराखंड में जब 2017 के बसंत आगमन पर
चुनावी बिगुल बज रहा था उस समय प्रदेश अध्यक्ष और केंद्र आलाकमान अपने प्रचारी
व्याख्यान और उपदेशों में कांग्रेस सरकार को यह कह कर घेर रही थी कि “मात्र कांग्रेस की वजह से ही उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति हो पायी
है’’ और हर मोर्चे पर कांग्रेस को घेरती रही l और अब सत्ता में आते ही पलट गयी है l जानकारी
के मुताबिक बता दूं कि लोकपाल और लोकायुक्त विधेयक 2011 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने लोकसभा में पास कर दिया था l उसके बाद इसको लागू करने अधिकार राज्य सरकारों के अधीन कर दिया गया था l जनरल बीसी खंडूड़ी सरकार के मुख्यमंत्रित्वकाल में इसे 2013 में राष्ट्रपति की स्वीकृति भी मिल गई थी, 24 सितंबर 2013 को विधायी विभाग ने बिल को प्रकाशित कराने के लिए सरकारी प्रेस पर भेजा ।
लेकिन इस एक्ट में विवाद यह था कि न्यायिक अधिकारियों को भी इसके अधीन कर दिया गया
था, जो कि अफसरान वर्ग को खला नहीं । उसके बाद कांग्रेस ने
सत्ता में आने पर 2014 में लोकायुक्त एक्ट समाप्त
कर दिया था । आज फिर कांग्रेस, बीजेपी के खिलाफ दोहरा चरित्र
दिखाते हुए गैरसैंण विधानसभा सत्र में लोकायुक्त अधिनियम लाने की रहनुमाई करती दिखाई
दी l नाबालिग उत्तराखंड राज्य को बने 17 साल हो चुके हैं। अब तक जिस सरकार ने भी प्रदेश में सत्ता संभाली करप्शन
को खत्म करने का दावा तो किया लेकिन उसके साथ-साथ जमकर भ्रष्टाचार में लतपत रही l अब तक दोनों दल भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में विकलांग अवस्था में नजर आये
हैं । दिलचस्प बात ये कि जिस लोकायुक्त से भ्रष्टाचार पर लगाम लग सकती है उसकी
कुर्सी राज्य में 5 सालों से खाली पड़ी है l क्योंकि अक्टूबर 23, 2013 को लोकायुक्त के
पद से जस्टिस एमएम घिल्डियाल का समय समाप्त हो गया था और इसी दिन से यह भ्रष्टाचार
निरोधी पद खाली है । चुनावी समर में भाजपा ने सत्ता में आने से पहले 100 दिन के भीतर लोकायुक्त गठन की बात तो कही थी, लेकिन
अब भाजपा लोकायुक्त पर जीरो होने के साथ-साथ जीरो टोलरेंस पर भी शून्य की अनंतता
पर भी दिखाई नहीं दे रही है ।
उसी दौर में उत्तराखंड के
भी चुनाव हुए उसमें भी भ्रस्टाचार का मुद्दा गरमाया l उस चुनाव के कुछ दिन पहले आपदा, NH घोटाले को खूब चुनाव में भुनाया गया और नये मुख्यमंत्री ने “जीरो टोलरेन्स” के तहत “खाऊंगा न खाने दूंगा नारे” का उत्तराखंडी वर्जन लांच
किया l इसी जीरो टोलरेंस के जीरो फिगर की बहस में राजनीतिक
तौर पर विवादित लोकपाल का मुद्दा और राज्यों में लोकायुक्त का मुद्दा गायब हो गया l
जिसका समर्थन देवभूमि के सबसे अधिक साफ़ सुधारी छवि के सी एम् श्री
खंडूरी जी ने पूर्ण समर्थन देकर उस मुद्दे को महत्वपूर्ण मान पास भी करवा दिया l
भ्रस्टाचार का इलाज है लोकपाल |
आओ जाने क्या है लोकायुक्त
और क्यों जरूरी है...?
किसी भी राज्य का
लोकायुक्त राज्य के उच्चतम न्यायलय का रिटायर जज या मुख्य न्यायाधीश हो सकता है l इसके अलावा भी अन्य
महत्वपूर्ण व्यक्ति को लोकायुक्त बनाया जा सकता है l इसमें ज्यादा से ज्यादा आठ लोगों को ही शामिल किया जा सकता है l खंडूरी काल के लोकायुक्त की ताकत- लोकायुक्त अपने अधिकार के अनुरूप किसी
भी मामले में, प्रारंभिक जांच या निरीक्षण के लिए
निर्देश दे सकते है। इसका की अनुमति के बिना अधिकारी को स्थानांतरित करना भी संभव
नहीं है। किसी भी मामले में वकील के अलावा अन्य वकीलों का एक पैनल बनाया जा सकता
है और जांच करते समय लोकायुक्त को सिविल कोर्ट की सभी शक्तियां प्राप्त होंगी ।
यहां तक कि इसके दायरे में मुख्यमंत्री और सरकार का मंत्रीमंडल भी आता है l अर्थात इसके प्रभाव से राज्य का राजसी मालिकाना हक अदा करने वाले वजीर-ए –आला को सरकार में पारदर्शिता दिखानी बहुत जरूरी है l
अब तक का जीरो टोलरेंस का
जीरो असर...?
यदि सरसरी तौर पर देखा
जाये जीरो टोलरेंस बिना सर पैर और दस्तावेजी आईने का मात्र एक जुमला है l इसमें किसी प्रकार का
अधिकारिक निरीक्षण की सहमति की कार्यप्रणाली नहीं है l सरकार के एक साल के कार्यकाल में पहले से घटित या वर्तमान घटित भ्रष्टाचार
सामने आये हैं, जिसमें चावल घोटाला, स्कॉलरशिप घोटाला, या कांग्रेस समय में हुए कुछ
घोटालों के प्रति जीरो टोलरेंस जीरो ही नजर आई है l यदि समीक्षात्मक लहजे में कहा जाये तो जीरो टोलरेंस मात्र जुमले का समानार्थक शब्द मात्र है l
Scripture By : हिमांशु पुरोहित ‘ सुमाईयां ‘
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