इतिहास के पन्नों में 13 अप्रैल की विजयी गाथा |
आपको जानकर ताज्जुब होगा कि भारत को पहला परमवीर चक्र
विजेता देने वाली कुमाऊं रेजीमेंट ने ही भारत को तीन बार थल सेनाध्यक्ष भी दिए हैं |
13 अप्रैल का दिन आख़िर कोई भारतीय कैसे भूल सकता है, जब सन् 1919 में अंग्रेज हुकूमत के आवारागर्द हुकुमरानों
ने जलियांवाला बाग को लाशों का समुंदर बना दिया था और इसी दिन 13 अप्रैल 1984
को भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को मात देते हुए कश्मीर के सियाचिन की बर्फीली
पहाड़ी पर शान से तिरंगा फहराया था |
ऑपरेशन मेघदूत नाम के इस सैन्य मिशन में भारतीय सेना ने सियाचिन
ग्लेशियर जैसे दुनिया का सबसे ऊंचा युद्धक्षेत्र की बर्फीली चोटी पर दुश्मनों के
खून से जीत की ऐतिहासिक गाथा लिखी थी | जिसका जिम्मा 4 कुमाऊं रेजिमेंट के कंधो पर
भी था | जहां सियाचिन ग्लेशियर से पाकिस्तानी दुश्मनों को खदेड़कर उस पर दोबारा से
अपना कब्जा किया था |
बहादुरी और शौर्य की मिसाल " कुमाऊँ रेजिमेंट "…
इंडियन आर्मी की हर रेजिमेंट का एक अपना अधिकारिक युद्ध
नारा और आदर्श वाक्य होता है, ठीक इसी तरह कुमाऊं रेजीमेंट का आदर्श-वाक्य ‘प्रक्रमो विजयते’ है, जिसका मतलब है " बहादुरी की विजय " होती है | वहीं इस रेजीमेंट के चार युद्ध
घोष हैं, ‘कालका माता की जय’, ‘बजरंग बली की जय’, ‘दादा किशन की जय’ और ‘जय दुर्गे नागा’ |
कुमाऊं रेजीमेंट की 1948 को कश्मीर के बड़गाम से शुरू
हुई वीरता की चाल और अनन्य बहादुरी ने कई पुरस्कार अपने नाम किए हैं |
सन् 1962 चीनी युद्ध में को लद्दाख और नेफा में
मेजर शैतान सिंह के नेतृत्व में 13 कुमाऊं रेजीमेंट की चार्ली कंपनी ने चीनियों के
दांत खट्टे कर दिए | मेजर शैतान सिंह को अपनी वीरता और शौर्य के लिए मरणोपरांत
परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया |
कुमाऊं रेजीमेंट को अब तक 2 परम वीर चक्र, 13 महा वीर चक्र, 82 वीर चक्र, 4 अशोक चक्र, 10 कीर्ति चक्र, 43 शौर्य चक्र, 6 युद्ध सेवा पदक, 14 से ज्यादा परम विशिष्ट सेवा पदक, 32 से ज्यादा अति विशिष्ट सेवा पदक, 69 से ज्यादा विशिष्ट सेवा पदक और एक अर्जुन पुरस्कार से
सम्मानित किया जा चुका है.
इसके अलावा इस रेजीमेंट को दो पद्म भूषण पुरस्कार भी मिल
चुके हैं.
पिछले लगभग 225 सालों से देश सेवा में तत्पर कुमाऊं
रेजीमेंट की 21 से अधिक बटालियन पूरे देश में अपनी सैन्य सेवाएं दे रही हैं |
Script By : हिमांशु पुरोहित ' सुमाईयां '
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