खामा गणि राजस्थान...
अगस्त
15, 1947 देश गुलामी की बंदिशों से आजाद हो चूका
था l पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान ( वर्तमान बांग्लादेश ) के अलग होने के बाद अब
हुकूमत-ए-हिन्द के सामने एक नई चुनौती यह थी कि देश को कैसे संभाला और संवारा जाये
l सैकड़ों रियासतों को जोड़ कर फिर से एक नया भारत बनाया गया l जहां एक तरफ कश्मीर का
अंतराष्ट्रीय परिसीमन उलझा हुआ था वहीं देश को अंतरिम एकजुट करने के तजवीज़ शुरू
हो चुकी थी l देश की आजादी के बाद पहला सूबा राजस्थान के नाम से जन्म लेने वाला था
l उस समय उन्नीस रियासतों को जोड़ कर मेवाड़ रावल जैतसिंह, राणा कुम्भा, राणा सांगा,
गोरा-बादल, पृथ्वीराज आदि जैसे योद्धाओं की रण भूमि राजस्थान अपने वजूद का इश्तेहार
दे रही थी l यूं तो राजस्थान को सूबे बनाने की आवाज 1945 के समय से ही
शुरू हो गयी थी, जिसकी सम्पन्नता और मुकम्मल रेखा साथ चरणों में सफल हो सकी l
जिसके लिए पंडित नेहरू ने उदयपुर में एक राजपुताना सभा बनाई थी l उसके बाद इस मुहीम
की अलख उदयपुर के राजा भूपाल सिंह और बीकानेर नरेश सार्दुल सिंघजी ने अंग्रेजी हुकूमत
के सामने जलाये रखा l व्रहद राजस्थान बनाने के पहला चरण में आजादी के बाद देश के
पहले गृह
मंत्री सरदार पटेल के प्रयासों से मार्च 18, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय
होकर ‘मत्स्य संघ’ बना । दुसरे चरण में मार्च 25, 1948 में कोटा,
बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ व शाहपुरा को
मिला कर ‘राजस्थान संघ’ बनाया गया । तीसरे चरण में अप्रैल 18, 1948 को उदयपुर रियासत को भी इसमें जोड़ा गया और नया नाम ‘संयुक्त राजस्थान संघ’
रखा
गया । संयुक्त राजस्थान संघ के पहले राजप्रमुख उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल
सिंह बने । लेकिन अभी भी पूर्ण राजस्थान नहीं बन पाया था l इसके बाद चौथे चरण की
कार्यवाही में मार्च 30, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर
रियासतों जो एकजुट करके बनाया गया ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ ।
और
तब से यही दिन राजस्थान के स्थापना दिवस के नाम से मनाये जाने लगा । लेकिन अभी भी
राजस्थान एकजुट होकर भी अलग-अलग था, क्योंकि ‘मत्स्य संघ’ अभी भी ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ का अंग नहीं था l इसलिए पांचवे चरण में अप्रैल 15, 1949 में ‘मत्स्य संघ’ को ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ से जोड़ा गया l भाषा, संस्कृति की समानता
के कारण अभी भी सिरोही रियासत अभी भी राजस्थान का हिस्सा नहीं बन पाए थे, इसके लिए
छटे चरण में सन 1948 को सिरोही रियासत, आबू,
देलवाड़ा
तहसील, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा को ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ में मिलाये
जाने का न्यौता दिया गया l लेकिन फ़िलहाल सिरोही रियासत ही ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’
में भारत के संविधान दिवस जनवरी 26,
1950 के
दिन शामिल किया गया l
लेकिन
अब भी कमी थी लोकभाषा, संस्कृति से समृद्ध पूर्ण राजस्थान को बनने में l और
आखिरकार सातवें और आखिरी चरण में नवंबर 1,
1956
को आबू, देलवाड़ा तहसील और मध्य प्रदेश में शामिल
सुनेल टप्पा को राजस्थान में शामिल कर ‘वृहत्तर राजस्थान संघ’ पूर्ण हो सका ।
देश
का पहला ऐसा राज्य रहा है राजस्थान जिसका परिसीमन कई बार किया गया l राजस्थान को
सात चरणों में संजोने के पीछे का कारण वहां की लोक-संस्कृति, बोली-भाषा, पहनावा,
संस्कार, प्रथाएं आदि एक जैसा होना था l जिस वजह से इसमें कई रियासतों को जोड़कर राजस्थान
बनाया गया l वहां के कई साहित्यकारों का मानना भी रहा है कि राजस्थान में विधाओं
और रिवाजों का पाषणकालीन वर्चस्व रहा है और इसको एकजुट बनाये रखने में राजस्थानी
बोली का बहुत योगदान रहा है l लेकिन आज भी राजस्थानी भाषा राज-मान्यता को तरस रही
है l राजस्थान के प्रसिद्ध साहित्यकार स्व. कन्हैयालाल सेठिया जी यहां की भाषा की
अनदेखी को लेकर यह लिखा था कि – खाली
धड़ री कद हुवै, चैरै बिन्यां पिछाण? मायड़ भासा रै बिन्यां, क्यां रो राजस्थान ?
देव
भूमि उत्तराखंड और शौर्य भूमि राजस्थान का पूर्वज-कालीन रिश्ता-
नये
नवाले सूबे और हिमालय की गोद में बसे देव भूमि उत्तराखंड का राजस्थान से खून का
रिश्ता भी है, क्योंकि उत्तराखंड की कई जातियां राजस्थान की शौर्य भूमि से तालुक
रख थी हैं l देव भूमि उत्तराखंड के पूर्वज, मुगलों के प्रभाव, अत्याचार से उत्तर
के हिमालयी क्षेत्र में आ बसे थे l जिनमें से पुरोहित, पालीवाल, चौहान, राणा आदि का
वहीं से विस्थापन कर हिमालयी क्षेत्रों में आ बसे थे l
सभी राजस्थानी प्रदेश वासियों को उत्तराखंड
की तरफ से राजस्थान दिवस की बहुत बहुत शुभकामनायें l
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